आज के इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 9वीं इतिहास का पाठ ‘वन्य समाज और उपनिवेशवाद’ का नोट्स को देखने वाले है। vanya samaj aur upniveshvad
| वन्य समाज और उपनिवेशवाद |
(i) वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021 देश में कुल वन क्षेत्र 80.9 मिलीयन हेक्टेयर है जो देश के कुल क्षेत्रफल का 24.62% है।
(ii) क्षेत्रफल के अनुसार भारत में सबसे ज्यादा वन मध्य प्रदेश में है इसके बाद दूसरे स्थान पर अरुणाचल प्रदेश तथा तीसरे स्थान पर छत्तीसगढ़ का स्थान है।
(iii) कुल क्षेत्रफल के प्रतिशत के अनुसार सबसे ज्यादा वन मिजोरम में है। यहां कुल क्षेत्रफल का 84.5% क्षेत्र वन से ढका हुआ है। इसके बाद दूसरा स्थान अरुणाचल प्रदेश तथा तीसरे स्थान पर मेघालय का स्थान है।
प्रश्न 1. आदिवासी किसे कहते है?
उत्तर– जनजातीय समाज के लोगों को आदिवासी कहते है। ऐसा इसलिए क्योंकि वे इस महाद्वीप पर सबसे पुराने समय से रहने वाले लोग है। भारत में इनकी आबादी अफ्रीका के बाद सर्वाधिक है।
आदिवासी के बारे में
(i) यह भोजन, ईंधन, लकड़ी, घरेलू सामग्री, जड़ी-बूटी, औषधियों, पशुओं के लिए चारा और कृषि औजारों की सामग्री के लिए आदि के लिए वनों पर आश्रित रहते हैं।
(ii) भारत की कुल जनसंख्या का 8.6% आदिवासी लोग हैं। महात्मा गांधी ने इन्हें ‘गिरिजन‘ कहा था क्योंकि ये लोग जंगल तथा पहाड़ों पर निवास करते हैं।
(iii) भारत के प्रमुख आदिवासी भील, गोंड, संथाल, पहाड़िया, चेरो, कोल, उरांव, हो, चुआर, खड़िया, मीना, खोंड इत्यादि हैं।
(iv) भारत में भील सबसे बड़ी जनजाति है, जो मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान एवं त्रिपुरा राज्यों में पायी जाती है।
(v) गोंड भारत की दूसरी बड़ी जनजाति है जो अधिकांशतः मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात में पायी जाती है।
(vi) संथाल भारत में तीसरी बड़ी जनजाति है जो बिहार, झारखंड, उड़ीसा एवं पश्चिम बंगाल में पायी जाती है।
प्रश्न 2. उपनिवेशवाद किसे कहते हैं?
उत्तर– जब एक देश दूसरे देश पर नियंत्रण या शासन करता है, तो उसे उपनिवेशवाद कहते है।
राजनैतिक जीवन
(i) उस समय आदिवासी समाज अलग-अलग कबीलों में बँटा था। और हर कबीले का एक मुखिया होता था, जो कबीले की सुरक्षा का जिम्मेदार था।
(ii) आदिवासी समाज की अपनी स्वतंत्र शासन प्रणाली थी। सत्ता पूरी तरह एक जगह नहीं थी, बल्कि उसमें विकेन्द्रीकरण था। उनके पारम्परिक संस्थानों में वैधानिक (Law), न्यायिक (Justice) और कार्यपालिका शक्तियाँ मौजूद थीं।
(iii) सिंहभूम (बिहार) में मानकी और मुंडा प्रणाली तथा संथाल परगना में मांझी और परगनैत प्रणाली प्रचलित थीं, जो आज भी संचालित हैं और इनका संचालन मुखियाओं द्वारा किया जाता है।
(iv) अंग्रेजों ने मुखियाओं को लालच देकर अपने पक्ष में किया और कठोर राजस्व वसूली कराई। बाद में शोषण बढ़ने पर कई मुखियाओं ने अंग्रेजों का विरोध किया।
सामाजिक जीवन
(i) जंगल से लकड़ी, चारा और शिकार उनकी जरूरतें पूरी करते थे। नृत्य, संगीत और सरहुल पर्व उनका प्रमुख सांस्कृतिक हिस्सा था। आदिवासी महिलाएँ स्वतंत्र थीं और काम में बराबर सहयोग देती थीं।
(ii) सरहुल – चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाने वाला अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व।
(iii) अंग्रेजों ने ईसाई मिशनरियों को आदिवासी इलाकों में भेजा, जिससे लोगों का धर्म बदलने लगा और उनकी पुरानी सामाजिक व्यवस्था टूट गई।
आर्थिक जीवन
(i) इनका आर्थिक जीवन का आधार कृषि था। वे जगह बदल-बदल कर घुमंतू (झूम) या पोडू विधि से खेती करते थे।
(ii) आदिवासी में खेती के अलावा हाथी दाँत, बाँस, मशाले, रेशे एवं रबर का व्यापार तथा लाह (पलास, बैर, कुसुम के पेड़ पर कीड़े पालकर लाह बनाते थे) व तसर का उद्योग भी करते थे।
(iii) डायट्रिच बैडिस नामक जर्मन वन विशेषज्ञ ने सन् 1864 में वन सेवा (Forest Department) की स्थापना की तथा सन् 1865 में ‘भारतीय वन अधिनियम’ पारित कर आदिवासियों को पेड़ काटने और जंगल इस्तेमाल करने से रोक दिया गया।
(iv) अंग्रेजों ने रेल की पटरी एवं रेल के डब्बे की सीट बनाने के लिए जंगलों की कटाई शुरू कर।
धार्मिक जीवन
आदिवासी अपने धर्म में बाहरी हस्तक्षेप नहीं चाहते थे। अंग्रेजों ने शिक्षा के नाम पर मिशनरियों को भेजा, जिन्होंने धर्म परिवर्तन कराए। इससे धार्मिक असंतोष बढ़ा और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू हुए।
पहाडिया विद्रोह
(i) पहाड़िया जनजाति का निवास स्थान वर्तमान बिहार के भागलपुर तथा झारखंड में स्थित राजमहल की पहाड़ियों के क्षेत्र में था।
(ii) यहां के मुखिया को अंग्रेजों ने जमींदार बना दिया तथा राजस्व वसूली का कार्य भी दे दिया जो आदिवासियों का शोषण कर रहे थे।
(iii) 1779 में हुआ यह विद्रोह भारत का पहला जनजातीय संथाल विद्रोह था। इस विद्रोह का उद्देश्य था जमींदारों से भू राजस्व की राशि कम कराना एवं किसानों की भूमि वापस छुड़वाना।
(iv) इस विद्रोह का नेता तिलका मांझी था। इनका जन्म 1750 में भागलपुर स्थित सुल्तानगंज के पास तिलकपुर गांव में हुआ था।
(v) 1784 में तिलका मांझी ने भागलपुर के तत्कालीन कलेक्टर अगस्टस क्लेवलैंड को तीर धनुष से जख्मी कर दिया था जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
(vi) 1785 में तिलकामांझी को गिरफ्तार कर भागलपुर में बीच चौराहे पर बरगद के पेड़ से लटका कर उन्हें फांसी दे दी गई।
तमार विद्रोह (1789–1794) = सन् 1789 ईस्वी में छोटानागपुर के उरांव जनजाति ने जमींदारों के शोषण के खिलाफ आंदोलन किया गया। और आगे चलकर यह मुंडा और संथाल आंदोलनों से जुड़ गया।
चेरो विद्रोह
(i) चेरो जनजाति पलामू (बिहार) क्षेत्र में रहती थी। उनका राजा चुड़ामन राय था, लेकिन राजशाही और अंग्रेज दोनों मिलकर जनता का शोषण कर रहे थे। इसलिए चेरो लोगों ने भूषण सिंह के नेतृत्व में 1800 ई. में विद्रोह कर दिया।
(ii) राजा की रक्षा के लिए अंग्रेजों की सेना आई। कर्नल जोन्स के नेतृत्व में अंग्रेजों ने विद्रोह दमन कर दिया। और 1802 ई. में भूषण सिंह को फाँसी दे दी गई।
चुआर विद्रोह
(i) चुआर जनजाति बंगाल प्रांत के मिदनापुर, बाँकुड़ा और मानभूम क्षेत्रों में रहती थी। अंग्रेजों की भारी लगान नीति से ये बहुत परेशान थे।
(ii) करणगढ़ की रानी सिरोमणी के नेतृत्व में चुआरों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू किया। विद्रोह 1798 में चरम पर था।
(iii) 6 अप्रैल 1799 को रानी सिरोमणी को गिरफ्तार कर कलकत्ता जेल भेज दिया गया। पर विद्रोह नहीं रुका। बाद में चुआर लोग गंगा नारायण के नेतृत्व वाले भूमिज विद्रोह में भी शामिल हो गए।
‘हो’ विद्रोह (1820–1821)
(i) ‘हो’ जनजाति सिंहभूम (छोटानागपुर) क्षेत्र में रहती थी। स्थानीय राजा जगन्नाथ सिंह अंग्रेजों का समर्थक था और उनके साथ मिलकर लोगों पर अत्याचार करता था।
(ii) इसलिए ‘हो’ लोगों ने राजा और अंग्रेज दोनों के खिलाफ विद्रोह किया। बाद में ‘हो’ जनजाति ने मुंडा विद्रोह में भी हिस्सा लिया।
कोल विद्रोह (1831–1832)
(i) कोल विद्रोह की शुरूआत छोटानागपुर क्षेत्र में मुंडा, उरांव एवं अन्य जनजातियों के द्वारा सन् 1831 ई० में हुआ।
(ii) पहले ये लोग शांतिपूर्ण जीवन जीते थे, लेकिन अंग्रेजों की नई लगान नीति, महाजनों का कर्ज़ शोषण और जमींदारों की दादागिरी से तंग आ गए।
(iii) मानकी/महतो, जो पहले समाज के सेवक थे, अंग्रेजों के कारण जमींदार बन गए और अपने ही समाज का शोषण करने लगे।
(iv) बाहरी व्यापारियों (हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख) और महाजनों के आने से कोलों की जमीन छिनने लगी। इसलिए कोलों ने जमींदारों व दिकू (गैर-आदिवासी) के खिलाफ हिंसक विद्रोह किया।
(v) विद्रोह पलामू तक फैल गया और लगभग 800–1000 कोल मारे गए। विद्रोह दबा दिया गया। इसके परिणामस्वरूप कोलों के लिए शोषण विहीन शासन की स्थापना हेतु ‘साउथ वेस्ट फ्रंटियर ऐजेंसी‘ बनाई गई।
भूमिज विद्रोह
(i) सन् 1832 ई० में वीरभूम के जमींदार के पुत्र गंगा नारायण के नेतृत्व में भूमिज विद्रोह की शुरूआत हुई। यह ‘गंगा नारायण हंगामा‘ के नाम से इतिहास में जाना जाता है।
(ii) अंग्रेजी सरकार ने इनपर अधिक राजस्व का बोझ डाला था और इस आंदोलन में गंगा नारायण का साथ ‘कोलों’ एवं ‘हो’ दे रहे थे।
(iii) इन आदिवासी विद्रोहियों ने चाइबासा में तैनात अंग्रेजी सेना के खिलाफ हमला किया। उन्होंने सरकारी खजाने लूट लिए और जेल में बंद लोगों को आज़ाद कर दिया।
संथाल विद्रोह (1855–1856)
(i) यह आदिवासी इतिहास का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध विद्रोह था। भागलपुर से राजमहल के बीच का क्षेत्र दामन-ए-कोह कहलाता था। यह संथालों का प्रमुख इलाका था। यहाँ के संथाल जमींदारों, महाजनों और अंग्रेजों के अत्याचार से बहुत परेशान थे।
(ii) संथालों को उत्प्रेरित करने का कार्य भगनाडीह गाँव के चुलू संथाल के चार पुत्र-सिद्ध, कान्हू, चाँद और भैरव ने किया। और सिद्धू ने खुद को ठाकुर (देवता) का अवतार घोषित किया ताकि लोगों में जोश बढ़े।
(iii) 30 जून 1855 को भगनाडीह गाँव में एक बड़ी सभा बुलाई गई। इसमें 400 गाँवों के 10,000 संथाल अपने हथियार (मुख्यतः तीर-धनुष) के साथ आए।
(iv) सिद्ध और कान्हू ने स्वतंत्रता की घोषणा की। और कहा कि ‘अब हमारे ऊपर कोई सरकार नहीं है, हाकिम नहीं है, संथाल राज्य स्थापित हो गया है। इन आदिवासियों ने मिलकर गाँवों में जुलूस निकाले।
(v) दीसी नामक स्थान पर अत्याचारी दरोगा महेश लाल की हत्या से विद्रोह की शुरुआत हुई। इसके बाद संथालों ने— सरकारी दफ्तरों पर हमला, महाजनों के घर जलाए, अंग्रेजों की बस्तियाँ उजाड़ी।
(vi) अंग्रेजों ने कलकत्ता और पूर्णिया से बड़ी सेना बुलाई गई। और पूरे क्षेत्र में मार्शल लॉ लगा दिया। कान्हू सहित 5000 से अधिक संथाल मारे गए।
(vii) संथालों की गाँव जलाकर नष्ट कर दिए गए। सिद्धू और बाकी नेताओं को पकड़ लिया गया या मार दिया गया।
(viii) विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने एक नया कानून बनाया — 1885 का अधिनियम 37 । इस कानून के तहत संथाल परगना नाम का अलग जिला बनाया गया। इस इलाके को ‘वहिर्गत क्षेत्र’ घोषित किया गया, यानी यहाँ सामान्य अंग्रेजी कानून नहीं चलेगा। इस क्षेत्र का पूरा प्रशासन सीधे गवर्नर जनरल के हाथ में दे दिया गया, ताकि यहाँ की समस्याओं को खास व्यवस्था से संभाला जा सके।
मुंडा विद्रोह
(i) सन् 1899-1900 में छोटानागपुर में मुंडा आदिवासियों ने उपनिवेशवाद (अंग्रेजी शासन) का विरोध किया। इस विद्रोह का नेतृत्व बिरसा मुंडा ने किया।
(ii) बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1874 को पलामू जिले के तमाड़ के निकट उलिहातु नामक गाँव में हुआ था। बाद में इन पर धर्म का बहुत प्रभाव पड़ा तथा उसे ईश्वर में अटूट विश्वास था। अतः सन् 1895 ई० में उसने अपने आपको ईश्वर का दूत घोषित कर दिया।
(iii) 25 दिसम्बर सन् 1899 ई० को उसने ईसाई मिशनरियों पर आक्रमण किया। 8 जनवरी 1900 ई० को ब्रिटिश सरकार द्वारा इस विद्रोह को बुरी तरह कुचल दिया गया।
200 पुरुष एवं महिला मारे गए तथा 300 लोग बन्दी बना लिए गए। कई नेताओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
(iv) बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी के लिए सरकार की तरफ से 500 रुपये इनाम की घोषणा की गयी और परिणामस्वरूप 3 मार्च 1900 ई० को बिरसा गिरफ्तार कर लिया गया और राँची जेल में जून में, हैजा से उनकी मृत्यु हो गई।
(v) आगे चलकर यही आन्दोलन स्वंतत्रता आन्दोलन में भाग ले रहे ताना भगत के आन्दोलन (सन् 1914) का प्रेरणा स्रोत बना। आदिवासियों के लिए कई सुधारात्मक कार्य सरकार द्वारा किए गए।
कंध विद्रोह
(i) कंध लोग उड़ीसा के पहाड़ी क्षेत्रों में रहते थे, जो उस समय का मद्रास तथा बंगाल तक फैला था। इस जाति में विपत्तियों एवं आपदाओं से मुक्ति पाने के लिए ‘मरियाह प्रथा’ (मानव बलि प्रथा) का प्रचलन था। सन् 1837 ई० में ब्रिटिश सरकार ने इसे रोकने का प्रयास किया।
(ii) कंधों को लगा कि अंग्रेज उनकी धार्मिक और सामाजिक परंपराओं में दखल दे रहे हैं। इसलिए चक्र बिसोई नामक नेता ने विद्रोह किया। चक्र बिसोई, घुमसार के ताराबाड़ी गाँव में जन्मे कंध जनजाति के नेता थे।
भुइयां एवं जुआंग विद्रोह (उड़ीसा)
(i) उड़ीसा के भुइयां और जुआंग आदिवासी भी अपने राजा की सामंती और दमनकारी नीतियों से परेशान थे। 1867–68 में धरनीधर नायक के नेतृत्व में उन्होंने विद्रोह किया।
(ii) बेट्टी प्रथा वह व्यवस्था थी जिसमें आदिवासियों को अंग्रेजों, जमींदारों या अधिकारियों के लिए ज़बरदस्ती बिना मजदूरी के काम करना पड़ता था। इसे जबर्दस्ती मजदूरी (बेगार) भी कहा जाता था।
विद्रोह का परिणाम
(i) 1935 में भारतीय विधान सभा ने जनजातियों के लिए शिक्षा और आरक्षण का प्रस्ताव पारित किया।
(ii) संविधान की धारा 342 के तहत आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिया गया। और उन्हें शिक्षा, नौकरी, राजनीति में आरक्षण दिया गया।
(iii) आदिवासियों के अधिकारों और जंगलों की रक्षा के लिए 1952 में नई वन नीति बनाई गई।
(iv) मध्य प्रदेश के अंदर जो इलाके आदिवासी लोगों से भरे हुए थे, उन्हें अलग करके 1 नवंबर 2000 को एक नया राज्य बनाया गया, जिसका नाम छत्तीसगढ़ रखा गया। इसी तरह बिहार से अलग करके 15 नवंबर 2000 को झारखंड नाम का नया राज्य बनाया गया।
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दोस्तों उम्मीद करता हूं कि ऊपर दिए गए कक्षा 9वीं के इतिहास के पाठ 06 वन्य समाज और उपनिवेशवाद (vanya samaj aur upniveshvad) का नोट्स और उसका प्रश्न को पढ़कर आपको कैसा लगा, कॉमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद !









