आज के इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 10वीं राजनीतिक शास्त्र का पाठ ‘सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली’ का नोट्स को देखने वाले है। satta me sajhedari ki karyapranali
सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली |
प्रश्न 1. सत्ता में साझेदारी किसे कहते है?
उत्तर– समाज के सभी वर्ग के लोगों को सरकार में हिस्सेदारी देने को सत्ता में साझेदारी कहते है। सत्ता में साझेदारी के कारण टकराव कम हो जाते है।
☞ सत्ता की साझेदारी में लोकतंत्र का महत्व बहुत अधिक है। लोकतंत्र की सफलता और स्थिरता इस पर निर्भर करती है कि सत्ता का केन्द्रीकरण न हो, बल्कि अलग-अलग वर्गों, समुदायों और समूहों के बीच साझेदारी हो।
प्रश्न 2. राजनीतिक दल किसे कहते है?
उत्तर– लोगों का एक ऐसा समूह है, जो चुनाव लड़ने और राजनैतिक सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से काम करती है, उसे राजनीतिक दल कहते है।
☛ लोकतंत्र में सरकार के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बँटवारा होता है। इससे सत्ता का दुरुपयोग की संभावना खत्म हो जाती है, और हरेक अंग पर नियंत्रण रहता है। इसलिए लोकतंत्र को नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था भी कहते हैं।
प्रश्न 3. सत्ता का क्षैतिज वितरण किसे कहते है?
उत्तर– जब सरकार के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बंटवारा एक ही स्तर (केंद्र या राज्य) पर होता है, तो उसे सत्ता का क्षैतिज वितरण कहते है।
प्रश्न 4. सत्ता का ऊर्ध्वाधर वितरण किसे कहते है?
उत्तर– जब सरकार के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बंटवारा विभिन्न स्तरों पर होता है, तो उसे सत्ता का ऊर्ध्वाधर वितरण कहते है।
➣ शासन का क्षैतिज बंटवारा (विधायिका, कार्यपालिका न्यायपालिका) और ऊर्ध्वाधर या स्तरीय बंटवारा (केंद्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय सरकार) होता है।
शासन व्यवस्था दो प्रकार का होता है :-
(i) संघवाद (संघात्मक/संघीय शासन व्यवस्था):- वैसा शासन व्यवस्था जिसमें केंद्र और राज्य दोनों मिलकर शासन करता है, उसे संघवाद कहते हैं। संघीय शासन व्यवस्था में सत्ता का विकेंद्रीकरण होता है।
👉 भारत में संघीय शासन व्यवस्था है। और संघीय शासन व्यवस्था की शुरुआत अमेरिका से हुई।
☞ संघीय शासन व्यवस्था का उद्देश्य क्षेत्रीय एवं अन्य विविधताओं का आदर करना तथा राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता की रक्षा करना एवं उसे बढ़ावा देना है।
(ii) एकात्मक शासन व्यवस्था :- वैसा शासन व्यवस्था जिसमें सिर्फ केंद्र सरकार शासन करता है, उसे एकात्मक शासन व्यवस्था कहते हैं। और एकात्मक शासन व्यवस्था में सत्ता का केंद्रीकरण होता है।
संघीय शासन व्यवस्था की विशेषताओं
(i) संघीय शासन व्यवस्था में सर्वोच्च सत्ता केन्द्र सरकार के पास होती है और इस व्यवस्था में सरकार विभिन्न स्तर पर बंटे होते है।
(ii) संघीय व्यवस्था में दोहरी सरकार होती है। एक केंद्र सरकार और दूसरा राज्य सरकार।
(iii) प्रत्येक स्तर की सरकार अपने क्षेत्र में स्वायत्त(स्वतंत्र) होती है, और अपने-अपने कार्यों के लिए लोगों के प्रति जवाबदेह या उत्तरदायी होती है।
(iv) अलग-अलग स्तर की सरकार एक ही नागरिक समूह पर शासन करती है।
(v) नागरिकों की दोहरी पहचान होती है वे अपने क्षेत्र के भी होते हैं और राष्ट्र के भी। जैसे– बिहारी और भारतीय
(vi) दोनों सरकारों के अधिकारों और शक्तियों का मूल स्रोत संविधान होता है।
संघीय व्यवस्था का गठन
👉 संघीय शासन व्यवस्था का गठन दो तरीके से होता है।
(i) संघीय राज्य :- वैसी शासन प्रणाली जिसमें सत्ता का विभाजन एक केंद्रीय सरकार और कई क्षेत्रीय सरकार के बीच होती हैं, उसे संघीय राज्य कहते है। जैसे– संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विटजरलैंड, आस्ट्रेलिया
(ii) संघीय सरकार :- वैसी शासन प्रणाली जिसमें किसी देश में एक केंद्रीय सरकार और कई क्षेत्रीय सरकारें होती हैं, उसे संघीय सरकार कहते है। जैसे– भारत, बेलिज्यम और स्पेन
भारत में संघीय शासन व्यवस्था
☞ भारतीय संविधान में दो तरह की सरकारों की व्यवस्था की गई है- एक संपूर्ण राष्ट्र के लिए जिसे संघीय सरकार (केन्द्रीय सरकार) कहते हैं और दूसरी प्रत्येक प्रांतीय राज्य के लिए सरकार जिसे प्रांतीय सरकार (राज्य सरकार) कहते हैं।
⪼ संविधान में केन्द्र और राज्य सरकार के कार्य, क्षेत्र और अधिकार को बाँट दिया गया है। विधायी अधिकारों को तीन सूचियों में बांटा गया है।
(i) संघ सूची :- संघ सूची में पूरे देश के लिए महत्त्व रखने वाले विषयों को रखे गए हैं। इन पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को है। जैसे– रक्षा, विदेशनीति, संचार साधन, मुद्रा बैंकिंग आदि
(ii) राज्य सूची :- राज्य सूची में स्थानीय महत्त्व के विषयों को रखा गया है। इनपर सिर्फ राज्य सरकार कानून बना सकती है। जैसे– जेल, स्वास्थ्य, शिक्षा, पुलिस आदि
(iii) समवर्ती सूची :- समवर्ती सूची में केन्द्र और राज्य दोनों के लिए महत्त्व रखनेवाले विषयों को रखा गया है। इन विषयों पर केन्द्र और राज्य सरकार दोनों ही कानून बना सकती है। जैसे– आपराधिक कानून, विवाह और तलाक
☛ संघ सूची में कुल 97 विषय, राज्य सूची में 66 विषय तथा समवर्ती सूची में 47 विषय को रखा गया है। संविधान में भारत को राज्यों का संघ घोषित किया गया है।
⪼ जब एक ही विषय पर केन्द्र और राज्य सरकार दोनों ही कानून बनाते हैं, तब केन्द्र सरकार द्वारा बनाया कानून ही मान्य होता है।
अवशिष्ट सूची = जो विषय इन तीनों सूचियों में नहीं आते हैं, उसे अवशिष्ट सूची में रखा जाता है । इस विषय पर कानून बनाने का अधिकार केन्द्र सरकार का होता है। जैसे– कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी
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प्रश्न 5. केंद्र शासित प्रदेश किसे कहते है?
उत्तर– वैसे क्षेत्र जो अपने भागौलिक आकार या अन्य कारण से एक स्वतंत्र राज्य नहीं बन सकते हैं, और ना ही किसी राज्य में मिलाया जा सकता है, तो ऐसे क्षेत्र पर केंद्र सरकार शासन करती है, इन्हीं क्षेत्रों को केंद्र शासित प्रदेश कहा जाता है। जैसे– चंडीगढ़, लक्षद्वीप, दिल्ली
☞ जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था। और मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम आदि राज्यों को कुछ विशेष प्रावधान दिए गए हैं।
⪼ किसी भी प्रकार के कानून को पास करने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार को संसद के दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत प्राप्त करना अनिवार्य है।
➣ केंद्र और राज्य के विवाद को निपटाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का व्यवस्था किया गया है। तथा केंद्र और राज्य सरकार के द्वारा बनाए गए कानून की जांच कर उन्हें गैरकानूनी घोषित करने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को दिया गया है।
☛ सोवियत संघ (रूस) विश्व का एक महान रूप में उभरा, लेकिन 1991 (कहीं 1989) ईस्वी के बाद यह अनेक राष्ट्रों में विघटित हो गया। इसका मुख्य कारण केंद्रीकरण और रूसीकरण की नीति था।
☞ वेस्टइंडीज में 1958 में संघ की स्थापना की गई। और 1962 ईस्वी में संघ भंग भी हो गई। इसका मुख्य कारण केंद्रीय सरकार की कमजोरी एवं संघीय इकाई की राजनैतिक प्रतिस्पर्द्धा थी।
➣ नाइजीरिया में 1950 में संघीय व्यवस्था की स्थापना की गई। लेकिन यह ज्यादे समय तक नहीं चल सका, क्योंकि यहां के तीन बड़ी जातीय समूहों (एरुबा, इबो, हउसा फुलानी) के द्वारा अपने प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास हुए, जिससे अन्य जातियों में भय और संघर्ष का माहौल उत्पन्न हुआ।
भाषा नीति
प्रश्न 6. भाषा नीति किसे कहते है?
उत्तर– जिस नीति में सभी भाषाओं का सम्मान किया जाता है, उसे भाषा नीति कहा जाता है। भारत में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है और 22 भाषा को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है।
☞ भारतीय संविधान में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया है, क्योंकि यहां आबादी के 40% लोगों की भाषा है। जन आंदोलन होने के बाद हिंदी और अंग्रेजी दोनों को राजकीय भाषा का दर्जा दिया गया है।
☛ 1991 की जनगणना में लोगों ने 1500 से अधिक भाषा को अपनी मातृभाषा के रूप में दर्ज करवाया। और 1991 के जनगणना के अनुसार भारत में 114 प्रमुख भाषा थी।
⪼ संविधान के अनुसूची 8 में 22 भाषाओं का चर्चा है, इसी कारण इसे अनुसूचित भाषाएं कहा जाता है।
केंद्र की शक्ति
(i) किसी राज्य के सीमा या नाम में परिवर्तन करने का अधिकार संसद को है।
(ii) आपातकाल के दौरान सारी शक्तियां केंद्र के पास चली जाती है। संसद को राज्य के अधिकार के क्षेत्र में आने वाले विषयों पर भी कानून बनाने का शक्ति प्रदान हो जाती है।
(iii) केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त योजना आयोग, राज्य के संसाधनों पर निगरानी करता है। तथा इसके अलावा केंद्र सरकार, राज्यों को ऋण देता है।
(iv) अगर राज्य की विधानसभा (विधान मंडल) कोई कानून (विधेयक) बनाती है, और राज्यपाल को लगता है कि यह कानून राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना पास नहीं होना चाहिए, तो वह इस विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज सकता है।
(v) विशेष परिस्थिति में केंद्र सरकार राज्य सूची के विषय पर भी कानून बना सकता है।
(vi) भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था इकहरी है। भारत में जो बड़े सरकारी अधिकारी (IAS, IPS) होते हैं, वे राज्य में काम तो करते हैं, लेकिन राज्य न तो उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई कर सकता है और ना ही उन्हें सेवा से हटा सकता है।
(vii) किसी क्षेत्र में सैनिक शासन लागू होता है, तो संसद को अधिकार मिल जाता है कि ऐसी स्थिति में वह केंद्र या राज्य के किसी अधिकारी के द्वारा शांति व्यवस्था बनाए रखे।
प्रश्न 7. विकेंद्रीकरण किसे कहते है?
उत्तर– जब किसी सरकार के कार्यों और अधिकारों को केंद्र से अलग करके छोटे-छोटे भागों या स्तरों में बांटा जाता है, तो उसे विकेंद्रीकरण कहते है। विकेंद्रीकरण से काम जल्दी और ठीक ढंग से हो पाता है, क्योंकि स्थानीय लोग अपनी जरूरतों को अच्छी तरह जानते हैं।
प्रश्न 8. केंद्रीकरण किसे कहते है?
उत्तर– जब किसी सरकार में सभी अधिकार और निर्णय लेने की शक्ति एक ही स्थान या व्यक्ति के पास होता है, तो उसे केंद्रीकरण कहते है।
भारत में विकेंद्रीकरण क्यों ज़रूरी है?
(i) हर जगह की ज़रूरतें अलग होती हैं, इसलिए स्थानीय लोग अपने हिसाब से फैसले ले सकते हैं।
(ii) जनता खुद अपने विकास में शामिल होती है। तथा केंद्र और राज्य सरकारों का काम कुछ हद तक कम हो जाता है।
(iii) पंचायतों और नगरपालिकाओं में आरक्षण के ज़रिए महिलाओं, दलितों, पिछड़े वर्ग के लोग भी शामिल होते हैं।
बिहार में पंचायती राज व्यवस्था
(i) विश्व का सबसे प्राचीन गणतंत्र लिच्छवी गणतंत्र (वैशाली) है।
(ii) वैदिक ग्रंथों में भी सभा और समिति जैसी संस्था का उल्लेख मिलता है।
(iii) महात्मा गांधी कहते थे कि “भारत की आत्मा गांवों में बसती है।”
(iv) स्थानीय स्वशासन (शासन) को राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत के अनुच्छेद 40 में स्थान दिया गया है।
(v) पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत बलवंत राय मेहता समिति के द्वारा 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिला से हुई।
(vi) 73वां संविधान संशोधन, 1991 के द्वारा पंचायती राज को अधिनियम बना, जो 22-23 दिसंबर 1992 ईस्वी को लोकसभा एवं राज्य सभा द्वारा पारित हुआ।
(vii) संविधान के भाग 9 में पंचायती राज अधिनियम को सम्मिलित किया गया। और संविधान के अनुच्छेद 243 में पंचायती राज अधिनियम का चर्चा है। तथा पंचायती राज अधिनियम को संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में जोड़ा गया है।
(viii) पंचायती राज अधिनियम में 29 मुद्दों का उल्लेख है, जो पंचायती राज के क्षेत्राधिकार में आते हैं।
(ix) पंचायती राज संस्थाओं को विघटित(खत्म) नहीं किया जा सकता है। किसी कारणवश विघटन के 6 माह के अंदर चुनाव करवाना जरूरी है।
(x) पंचायतों के लिए निर्वाचन नामावली( वोटर कार्ड) तैयार करवाने और पंचायत के सभी निर्वाचन (चुनाव) के संचालन के लिए निर्वाचन आयोग उतरदायी है। और राज्यपाल ही पंचायत चुनावों के लिए निर्वाचन आयोग की नियुक्ति करता है।
☛ बलवंत राय मेहता समिति ने पंचायत व्यवस्था के लिए त्रि-स्तरीय ढाँचा का सुझाव दिया
(i) ग्राम स्तर पर पंचायत
(ii) प्रखंड स्तर पर पंचायत समिति या क्षेत्रीय समिति
(iii) जिला स्तर पर जिला परिषद्
ग्राम पंचायत
(i) राज्य सरकार द्वारा 7000 की आबादी पर एक ग्राम पंचायत का गठन होता है। और 1 ग्राम पंचायत में 15 से 16 वार्ड होते हैं। तथा एक वार्ड 500 की आबादी पर बनाया जाता है।
(ii) ग्राम पंचायत का प्रधान मुखिया होता है। और इसकी सहायता के लिए उपमुखिया भी होता है। ग्राम पंचायत में सरकार की ओर से एक पंचायत सेवक नियुक्त होते हैं, जो सचिव कहलाता है।
(iii) बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 के अनुसार बिहार के नगर पंचायत (नगर परिषद या नगर निगम) में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण मिला है।
ग्राम पंचायत के कार्य
(i) पंचायत क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजना तथा बजट तैयार करना।
(ii) प्राकृतिक आपदा में सहायता करना।
(ii) सार्वजनिक संपत्ति (जैसे- सड़के, तालाब) पर किसी का कब्जा (अतिक्रमण) हो जाए, तो ग्राम पंचायत उसे हटा सकती है।
(iv) गाँव में सामूहिक कामों में लोग अपनी इच्छा से मदद कर सकते हैं, इसमें ग्राम पंचायत लोगों को शामिल कर सकता है।
ग्राम पंचायत की शक्तियाँ
(i) ग्राम पंचायत संपत्ति खरीद सकती है, रख सकती है और बेच सकती है।
(ii) ग्राम पंचायत वस्तु पर कर (टैक्स) लगा सकती है। जैसे– पानी पर, सफाई कर, मेलो या हाटों पर।
(iii) राज्य वित्त आयोग की सिफारिश पर, वह सरकार से सहायक अनुदान (पैसा/फंड) भी प्राप्त कर सकती है।
ग्राम पंचायत की आय के स्रोत
(i) कर स्त्रोत (मकानों से होल्डिंग टैक्स, व्यवसाय, व्यापार से)
(ii) फीस और रेंट (किराया) – तीर्थ स्थानों, हाटों, मेलों का किराया, पानी की सप्लाई का शुल्क, गलियों में लाइट लगाने का शुल्क और शौचालयों।
(iii) वित्तीय अनुदान – राज्य वित्त आयोग की सिफारिश पर राज्य सरकार से मिलने वाला अनुदान (पैसा)
☞ ग्राम पंचायत के प्रमुख चार अंग है।
(i) ग्राम सभा = ग्राम सभा पंचायत की व्यवस्थापिका सभा है। और ग्राम पंचायत क्षेत्र में रहनेवाले सभी वयस्क स्त्री-पुरुष जो 18 वर्ष से अधिक उम्र के हैं, ग्रामसभा के सदस्य होंगे। ग्रामसभा की बैठक एक वर्ष में कम-से-कम चार बार होती है। और मुखिया द्वारा ग्रामसभा की बैठक बुलाई जाती है।
(ii) मुखिया = ग्राम पंचायत का प्रधान मुखिया होता है। इसका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। मुखिया या उपमुखिया को अपने पद से स्वयं हटने के लिए जिला पंचायती राज पदाधिकारी को त्याग पत्र देना पड़ता है। जबकि लोगों द्वारा जबरदस्ती हटाने के लिए ग्राम पंचायत के सदस्य का दो तिहाई वोट मुखिया के विरुद्ध चाहिए।
(iii) ग्राम रक्षादल (दलपति) = ग्राम रक्षादल, गाँव की पुलिस व्यवस्था है। इसमें 18 से 30 वर्ष के आयु वाले युवक शामिल हो सकते हैं। और इस सुरक्षा दल के नेता को दलपति कहा जाता हैं। इसके ऊपर गाँव की रक्षा और शांति का जिम्मेदारी रहती है।
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(iv) ग्राम कचहरी = ग्राम कचहरी, ग्राम पंचायत की अदालत है, जिसे न्यायिक कार्य दिए गए हैं। प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक ग्राम कचहरी होता है। और इसका प्रधान (प्रभारी) सरपंच होते है। इनका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
☞ ग्राम कचहरी दिवानी एवं फौजदारी दोनों मामलों का सुनवाई कर सकता हैं। सरपंच अधिकतम 10 हजार तक के मामले की सुनवाई कर सकता है।
☛ बिहार सरकार द्वारा ग्राम कचहरी में एक न्याय मित्र और एक न्याय सचिव नियुक्त किया जाता है। न्याय मित्र, सरपंच के कार्यों में सहयोग देता है, जबकि न्याय सचिव ग्राम कचहरी के कागजातों को संभाल कर रखता है।
पंचायत समिति
(i) पंचायत समिति, पंचायती राज व्यवस्था का दूसरा (मध्य) स्तर है। यह ग्राम पंचायत और जिला परिषद के बीच का हिस्सा होती है।
(ii) हर 5000 की आबादी पर पंचायत समिति का एक सदस्य चुना जाता है। पंचायत समिति का प्रधान प्रमुख होता है। और इसकी सहायता के लिए उपप्रमुख भी होता है।
(iii) प्रमुख, बैठक बुलाता और उसका संचालन करता है। तथा सभी कामों की जांच करता है। और प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) पर नजर रखता है।
(iv) प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO), पंचायत समिति का सचिव होता है। और प्रमुख के कहने पर बैठक बुलाता है। और पंचायतों की निगरानी करता है।
पंचायत समिति के कार्य
(i) सभी ग्राम पंचायतों की वार्षिक योजनाओं पर चर्चा करता है। और उन योजनाओं को जिला परिषद को देता है।
(ii) राज्य सरकार या जिला परिषद के बताए गए काम को करता है।
(iii) गाँव में विकास के काम करना।
(iv) आपदा (जैसे बाढ़, सूखा) में मदद करना।
जिला परिषद्
(i) बिहार में पंचायती राज व्यवस्था का तीसरा और सबसे ऊँचा स्तर जिला परिषद् है। इसके क्षेत्र में जिले की सभी पंचायत समितियाँ आती हैं।
(ii) हर 50,000 की आबादी पर जिला परिषद् का एक सदस्य चुना जाता है। और प्रत्येक जिला परिषद् का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष होता है। इन्हें जिला परिषद् के सदस्य ही चुनते हैं।
(iii) जिला परिषद् का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है।
बिहार में नगरीय शासन व्यवस्था
(i) यूनानी विद्वान मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र के नगर पालिका संगठन के बारे में लिखा है।
(ii) चंद्रगुप्त के प्रधानमंत्री चाणक्य अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में पाटलिपुत्र के नगर प्रशासन का वर्णन किया।
(iii) 74वां संविधान संशोधन 1992 के द्वारा नगरीय शासन व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई। और नगर पालिका का उल्लेख संविधान के 12वीं अनुसूची में है।
👉 बिहार में नगरों के स्थानीय शासन के लिए तीन प्रकार की संस्थाएं हैं :-
(i) नगर पंचायत
(ii) नगर परिषद्
(iii) नगर निगम
नगर पंचायत
(i) जिस शहर की आबादी 12,000 से 40,000 के बीच होती है, वहां नगर पंचायत की स्थापना होती है।
(ii) नगर पंचायत बनने के लिए शर्त यह है कि शहर की तीन चौथाई (75%) लोग खेती के अलावा कोई और काम करते हो।
(iii) नगर पंचायत के सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं, और कुछ सदस्य राज्य सरकार द्वारा नियुक्त होते हैं। नगर पंचायत के सदस्यों की संख्या 10 से 37 तक होती है।
(iv) नगर पंचायत के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है। और नगर पंचायत में एक अध्यक्ष (Chairman) और एक उपाध्यक्ष (Vice Chairman) होता है।
(v) अध्यक्ष नगर पंचायत का काम देखता है। और अध्यक्ष के न होने पर उपाध्यक्ष काम देखता है।
नगर परिषद
(i) नगर पंचायत से बड़े शहरों में नगर परिषद बनता है। जिस शहर की आबादी 2 लाख से 3 लाख के बीच होती है, वहां नगर परिषद की स्थापना होती है।
(ii) नगर परिषद् बनने के लिए शर्त यह है कि शहर की तीन चौथाई (75%) लोग खेती के अलावा कोई और काम करते हों। और शहर में जनसंख्या का घनत्व हर वर्ग किलोमीटर में 400 लोग होना चाहिए।
☞ नगर परिषद् के चार अंग होते हैं-
(i) नगर पर्षद = नगर पर्षद का सदस्य पार्षद या कमिश्नर कहलाते हैं। इसमें कम-से-कम 10 और अधिकतम 40 सदस्य होते हैं। इसमें 80% सदस्य चुने जाते हैं, जबकि 20% मनोनीत होते हैं। पार्षद का कार्यकाल 5 साल होता है।
☛ राज्य सरकार चाहे तो परिषद को भंग कर सकती है। नगर पर्षद का हर महीने बैठक होती है। और नगर पर्षद के सदस्य अपने में से एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं।
(ii) समितियाँ = नगर परिषद् में कार्यों के सुचारु रूप से संचालन के लिए कई समितियां बनाई जाती हैं। और समितियों में 3 से 6 सदस्य होते हैं। समितियां को नगर पर्षद के द्वारा नियुक्त किया जाता है। समितियां परिषद् को सलाह देती हैं, और काम में मदद करती हैं।
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(iii) अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष = अध्यक्ष (मुख्य पार्षद) और उपाध्यक्ष (उपमुख्य पार्षद) का चुनाव नगर परिषद् के सदस्य करते हैं। इसके सदस्य का कार्यकाल 5 साल का होता है, पर इन्हें बीच में भी हटाया जा सकता है।
☛ अध्यक्ष नगर परिषद् का प्रधान होता है। अध्यक्ष परिषद् के सभी कामों की देखभाल करता है। और अध्यक्ष को शहर का प्रथम नागरिक माना जाता है। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष सभी काम संभालता है।
(iv) कार्यपालक पदाधिकारी = हर नगर परिषद् में एक कार्यपालक पदाधिकारी होता है। जिसकी नियुक्ति राज्य सरकार करती है। नगर परिषद में अन्य कर्मचारी (स्वास्थ्य अधिकारी, शिक्षा निरीक्षक, टैक्स दरोगा) भी होते हैं। ये अधिकारी कार्यपालक पदाधिकारी की मदद करते हैं।
नगर परिषद के प्रमुख कार्य
(i) नगर परिषद शहर की देखरेख और विकास के लिए जिम्मेदार होती है।
(ii) यह नागरिकों की सुविधाओं और सेवाओं का प्रबंधन करती है।
(iii) शहर को साफ-सुथरा और व्यवस्थित बनाता है।
(iv) अस्पताल, शिक्षा, सफाई, सड़कें और नालियां आदि का रखरखाव करती है।
(v) नई सड़क, गलियों एवं नालियाँ बनाना।
(vi) शहर के गंदे इलाके को बसने योग्य बनाना
(vii) गरीबों के लिए घर बनवाना
नगर परिषद् के आय के स्रोत
(i) नगर परिषद् शहर के विकास और सुविधाओं के लिए कई तरह के कर (मकान कर, पानी कर, रोशनी कर, बाजार कर) वसूलती है।
(ii) नगर परिषद सीमा कर (चुंगी– बाहर से आने वाले सामानों पर लगने वाला कर) भी वसूलती है।
(iii) नगर में चलने वाले वाहन (बैलगाड़ी, टमटम, साइकिल, रिक्शा) पर भी कर वसूला जाता है।
(iv) राज्य सरकार भी समय-समय पर पैसा देती है।
नगर निगम
(i) नगर निगम बड़े शहरों में होता है, जहाँ की जनसंख्या 3 लाख से अधिक होती है।
(ii) भारत में सबसे पहला नगर निगम 1688 में मद्रास (चेन्नई) में बना था। और बिहार में पहला नगर निगम 1952 में पटना में बना।
(iii) नगर निगम को छोटे-छोटे हिस्सों (वार्डों) में बाँटा जाता है। वार्ड की संख्या, हर वार्ड की जनसंख्या पर निर्भर करती है।
(iv) बिहार में एक नगर निगम में वार्डों की न्यूनतम संख्या 37 और अधिकतम संख्या 75 है। पटना नगर निगम में 75 वार्ड, गया में 35 वार्ड, भागलपुर में 51 वार्ड, मुजफ्फरपुर में 48 वार्ड, दरभंगा में 48 वार्ड, बिहार शरीफ में 46 वार्ड और आरा में 45 वार्ड संख्या है।
👉 बिहार में नगर निगम के प्रमुख चार अंग है।
(i) निगम परिषद् = नगर निगम कई वार्डों में बाँटा होता है, हर वार्ड से एक वार्ड पार्षद (वार्ड कौंसिलर) चुना जाता है। वार्ड पार्षद का कार्यकाल 5 साल का होता है। और हर महीने निगम परिषद की बैठक होती है। निगम परिषद का मुख्य कार्य नियम बनाना, निर्णय लेना और कर (टैक्स) लगाना है।
महापौर एवं उपमहापौर– निगम परिषद अपने सदस्यों में से ही महापौर और उपमहापौर चुनती है। इसका कार्यकाल 5 साल का होता है। महापौर निगम परिषद का अध्यक्ष होता है।
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☞ महापौर शहर का पहला नागरिक माना जाता है और इसलिए वह नगर में आए मेहमानों का स्वागत नगर की ओर से करता है। और महापौर के अनुपस्थित रहने पर उपमहापौर निगम के सारे काम संभालता है।
(ii) सशक्त स्थानीय समिति = यह निगम परिषद के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण समिति होती है। महापौर और उपमहापौर इसके सदस्य होते हैं। और समिति की अध्यक्षता महापौर करता है। समिति कर्मचारियों की नियुक्ति भी कर सकती है। साथ ही, यह नगर आयुक्त (Executive Officer) पर भी नजर रखती है।
(iii) परामर्शदात्री समितियों = नगर निगम में कुछ परामर्श देने वाली समितियाँ होती हैं। जो समितियाँ (शिक्षा समिति, बाजार एवं उद्यान समिति) अलग-अलग विषयों पर निगम परिषद को सलाह देती हैं।
(iv) नगर आयुक्त = नगर आयुक्त की नियुक्ति बिहार सरकार करती है। और यह पद भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) स्तर का होता है। नगर आयुक्त, नगर निगम का मुख्य प्रशासक होता है। नगर आयुक्त, नगर निगम के सभी कर्मचारियों के काम की देखरेख और कर्मचारियों की नियुक्ति करता ही।
नगर निगम के प्रमुख कार्य
(i) शहर की सफाई और कचरा प्रबंधन।
(ii) नालियों और सड़कों का रखरखाव।
(iii) सार्वजनिक स्वास्थ्य और अस्पतालों की देखभाल।
(iv) पानी की आपूर्ति और जल निकासी की व्यवस्था।
(v) स्ट्रीट लाइट्स और सड़क की मरम्मत।
(vi) नागरिकों को सुरक्षित और स्वच्छ वातावरण उपलब्ध कराना।
(vii) टैक्स वसूलना और विकास कार्यों के लिए पैसे जुटाना।
नगर निगम के आय के स्त्रोत
(i) नगर निगम कई प्रकार के कर (मकान कर, जल कर, शौचालय कर, छोटे वाहनों पर कर) लेता है।
(ii) बिहार सरकार द्वारा समय-समय पर पैसा दिया गया।
राज्यों के पुनर्गठन
(i) फजल अली की अध्यक्षता में 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बना।
(ii) इस आयोग की सिफारिश पर चार श्रेणियों के राज्यों की व्यवस्था समाप्त कर दो श्रेणियों का गठन किया गया – राज्य एवं संघीय क्षेत्र (केंद्रशासित प्रदेश)। 1956 में 14 राज्य एवं 6 संघीय क्षेत्र गठित किए गए।
(iii) बंबई राज्य का विभाजन कर 1960 में गुजरात और महाराष्ट्र तथा 1966 में पंजाब का विभाजन कर पंजाब और हरियाणा दो राज्यों का गठन किया गया। चंडीगढ़ को दोनों राज्यों की राजधानी बनाया गया।
(iv) 1961 में गोवा, दमन और दीव, पांडिचेरी, दादरा और नगर हवेली को संघीय क्षेत्र के अंतर्गत रखा गया। 1963 में नगालैंड की स्थापना की गई।
(v) 1969 से मद्रास राज्य का नाम तमिलनाडु हो गया। 1971 में हिमाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा मिल गया।
(vi) 1972 में असम राज्य का विभाजन कर मेघालय बनाया गया। 1973 में मैसूर का नाम बदलकर कर्नाटक रखा गया।
(vii) अप्रैल 1975 में सिक्किम भारत का वाइसवाँ राज्य बना। 1987 में मिजोरम को केंद्रशासित प्रदेश के दर्जे से हटाकर राज्य का दर्जा दिया गया।
(viii) गोवा, दमन और दीव को अधिनियम 1987 द्वारा केंद्रशासित प्रदेश से गोवा को अलग करके एक राज्य बना दिया गया।
(ix) भारत के चार नए राज्यों छत्तीसगढ़ (1 नवंबर 2000), उत्तरांचल (9 नवंबर 2000, वर्तमान में उत्तराखंड), झारखंड (15 नवंबर 2000) और तेलंगाना (2 जून 2014) का बनाया गया।
(x) यह क्रमशः भारत के 26वें, 27वें, 28वें एवं 29वें राज्य बने। लेकिन, 2019 में जम्मू-कश्मीर को राज्य के दर्जे से हटा कर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो केंद्रशासित प्रदेश बनाए गए।
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दोस्तों उम्मीद करता हूं कि ऊपर दिए गए कक्षा 10वीं के राजनीतिक शास्त्र के पाठ 02 सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली (satta me sajhedari ki karyapranali) का नोट्स और उसका प्रश्न को पढ़कर आपको कैसा लगा, कॉमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद !