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Bihar Board Class 10th Social Science History Chapter 1 Notes समाजवाद और साम्यवाद | samajwad aur samyavad Ncert & Objective

आज के इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 10वीं इतिहास का पाठ ‘समाजवाद और साम्यवाद’ का नोट्स को देखने वाले है। samajwad aur samyavad

Bihar Board Class 10th Social Science History Chapter 1 Notes समाजवाद और साम्यवाद | samajwad aur samyavad Ncert & Objective

समाजवाद और साम्यवाद

प्रश्न 1. समाजवाद किसे कहते है?
उत्तर– समाजवाद एक ऐसी विचारधारा है, जिसके द्वारा समाज के किसी भी वर्ग के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है, उसे समाजवाद कहते है। समाजवाद शब्द का पहला प्रयोग 1827 ई० में हुई।

प्रश्न 2. समाजवादी किसे कहते है?
उत्तर– जिन व्यक्तियों (चिंतकों) में समाजवाद की भावना उत्पन्न हुई, उन्हें समाजवादी कहा जाता है। जैसे– सेंट साइमन, फैरियर, लुई ब्ला

समाजवाद की उत्पत्ति

(i) समाजवादी भावना का उदय 18 वीं शताब्दी में यूरोप के देशों में औद्योगिक क्रांति के बाद हुआ।

(ii) औद्योगिक क्रांति के समय छोटे-छोटे उद्योग धंधों के स्थान पर विशाल पैमाने पर बड़े-बड़े उद्योगों का विकास हो रहा था।

(iii) औद्योगिक क्रांति के समय यूरोपीय समाज दो भाग में बंट गया है। पूंजीपति वर्ग और श्रमिक वर्ग

(iv) पूंजीपति वर्ग अधिक से अधिक मुनाफा कमा रहे थे, जबकि श्रमिक वर्ग की स्थिति बहुत ही खराब होते जा रही थी।

(v) कुछ विचारकों ने अपने लेखों और सिद्धांतों के द्वारा मजदूरों की स्थिति को बदलने का कार्य किया। जैसे– सेंट साइमन, फैरियर, लुई ब्ला, रोबोट ओवन, कार्ल मार्क्स एवं एंजेल्स

मजदूरों की दिक्कत

(i) कम वेतन का मिलना।
(ii) 19 से 20 घंटे तक काम करना।
(iii) सप्ताहिक छुट्टी का ना मिलना।
(iv) घायल श्रमिकों को मुआवजा ना मिलना।

प्रश्न 3. आरंभिक समाजवादी किसे कहते है?
उत्तर– कार्ल मार्क्स के पहले के समाजवादी को आरंभिक (आदर्शवादी, यूटोपियन या स्वप्नदर्शी) समाजवादी कहा जाता है।

👉 आरंभिक समाजवादियों का मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार कार्य तथा उसके कार्य के अनुसार पारिश्रमिक मिलना चाहिए। जैसे– सेंट साइमन, फैरियर, लुई ब्लां, रोबोट ओवन

प्रश्न 4. वैज्ञानिक समाजवादी किसे कहते है?
उत्तर– कार्ल मार्क्स के बाद के समाजवादी को वैज्ञानिक समाजवादी कहते है।

प्रश्न 5. साम्यवाद किसे कहते है?
उत्तर– साम्यवाद एक ऐसी विचारधारा है, जिसमें सर्वहारा वर्ग को शामिल किया जाता है, तथा किसी भी वर्ग के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है। साम्यवाद का देन कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स को कहा जाता है।

सेंट साइमन

(i) सेंट साइमन फ्रांसीसी विचारक थे।
(ii) इनका मानना था कि समाज में लोग एक दूसरे का शोषण करने के बदले मिलजुलकर प्रकृति का दोहन करें। तथा प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार कार्य तथा उसके कार्य के अनुसार पारिश्रमिक मिलना चाहिए।

चार्ल्स फैरियर

(i) चार्ल्स फ्यूरियर फ्रांसीसी विचारक थे।
(ii) वे आधुनिक औद्योगिकवाद के विरोधी थे तथा उनका मानना था कि श्रमिकों को छोटे नगर अथवा कस्बों में काम करना चाहिए

लुई ब्लां

(i) वह प्रथम फ्रांसीसी दार्शनिक तथा विचारक थे जिन्होंने राजनीति में भी हिस्सा लिया।
(ii) उनका मानना था कि आर्थिक सुधारों को प्रभावकारी बनाने के लिए सबसे पहले राजनीतिक सुधार आवश्यक है।

रोबर्ट ओवन

(i) यह एक अंग्रेजी दार्शनिक तथा उद्यमी थे।
(ii) उन्होंने स्कॉटलैंड के न्यू लोनार नामक स्थान पर एक फैक्ट्री की स्थापना की थी जिसमें उन्होंने श्रमिकों को अच्छी वेतन एवं सुविधाएं प्रदान की और फिर उन्होंने देखा कि मुनाफा कम होने के बजाय और भी ज्यादा बढ़ गया था।

(iii) अंत में उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि संतुष्ट श्रमिक हीं वास्तविक श्रमिक है।

कार्ल मार्क्स

(i) कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 ईस्वी को जर्मनी के राइन प्रांत में ट्रियर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था। और बाद में ईसाई धर्म को अपना लिया।

(ii) इनके पिता का नाम हेनरिक मार्क्स था, जो एक प्रसिद्ध वकील थे।

(iii) कार्ल मार्क्स ने बोन विश्वविद्यालय में विधि की शिक्षा ग्रहण की और 1836 में वे बर्लिन विश्वविद्यालय चले आये।

(iii) उन्होने अपने बचपन के मित्र जेनी से 1843 ईस्वी में विवाह कर लिया। वे हीगेल के विचारों से प्रभावित थे। इसके अलावा मॉन्टेस्क्यू तथा रूसो के विचार से भी प्रभावित थे।

(iv) कार्ल मार्क्स की मुलाकात पेरिस में फ्रेडरिक एंगेल्स 1844 ईस्वी में हुई।

(v) कार्ल मार्क्स अपने मित्र फ्रेडरिक एंगेल्स के साथ मिलकर 1848 इ. में एक साम्यवादी घोषणा पत्र (कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो) प्रकाशित किया, जिसे आधुनिक समाजवाद का जनक कहा जाता है।

(vi) कार्ल मार्क्स ने 1867 ई. में ‘दास कैपिटल’ नामक पुस्तक की रचना की, जिसे समाजवादियों की बाइबिल’ कहा जाता है। मार्क्सवादी दर्शन को साम्यवाद (साम्यवादी दर्शन) के नाम से जाना जाता है।

(vii) कार्ल मार्क्स का कथन “श्रमिकों को अपनी बेड़ियों के अलावा कुछ भी नहीं खोना है। उन्हें विश्व पर विजय प्राप्ति करनी है। दुनिया के श्रमिकों एक हो।”

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(viii) कार्ल मार्क्स ने लंदन में 1864 ईस्वी में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय संघ (प्रथम इंटरनेशनल) की स्थापना किया। तथा मजदूरों को यह समझाने का चेष्टा किया कि वे अपनी मुक्ति स्वयं और अपने प्रयत्नों द्वारा ही प्राप्त कर सकते हैं। इस सम्मेलन में एक नारा दिया ‘अधिकार के बिना कर्त्तव्य नहीं और कर्त्तव्य के बिना अधिकार नहीं’

(ix) कार्ल मार्क्स की मृत्यु 14 मार्च 1883 ईस्वी में (52 वर्ष) लंदन में हुई थी। और लंदन के हाइगेट कब्रिस्तान में दफनाया गया था।

(x) कार्ल मार्क्स की मृत्यु के बाद द्वितीय अंतरराष्ट्रीय संघ (द्वितीय इंटरनेशनल) 14 जुलाई 1889 को पेरिस में हुआ, जिसमें बीस देशों के 400 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

इस सम्मेलन द्वारा तय किया गया कि प्रत्येक वर्ष एक मई को मजदूर वर्ग की एकता दिवस के रूप में मनाया जायेगा। इसका अंतरराष्ट्रीय सचिवालय ब्रूसेल्स में स्थापित किया गया। 1 मई 1890 को सारे यूरोप और अमेरिका में लाखों मजदूरों ने हड़ताल और प्रदर्शन किया, तब से 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है।

कार्ल मार्क्स के सिद्धांत

(i) द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत = द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का अर्थ होता है कि दो विचारों का आपस में टकराव के बाद जो एक नया विचार उत्पन्न होता है।

(ii) वर्ग-संघर्ष का सिद्धांत = मार्क्स के अनुसार समाज का विकास वर्गों के आपसी तालमेल, सहयोग के आधार पर नहीं होता है। बल्कि वर्गों के आपसी संघर्ष के परिणामस्वरूप होता है।

(iii) इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या = मार्क्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिद्धान्त में उन शक्तियों को स्पष्ट किया है जो वास्तव में इतिहास की घटनाओं का संचालन करती हैं।

(iv) मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत = मार्क्स का अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त यह बताता है कि श्रम ही वस्तुओं के वास्तविक मूल्यों का निर्धारक तत्त्व है।

(v) राज्यहीन व वर्गहीन समाज की स्थापना

👉 मार्क्स ने इतिहास (ऐतिहासिक चरण) को छह भाग में बांटा।

(i) आदिम युग
(ii) दासता युग
(iii) सामंती युग
(iv) पूंजीवादी युग
(v) समाजवादी युग
(vi) साम्यवादी युग

रूसी कैलेंडर

पहले रूस में 1 फरवरी 1918 तक जूलियन कैलेंडर प्रचलित था। इसके बाद ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपनाया गया। ग्रेगोरियन कैलेंडर, जूलियन कैलेंडर से 13 दिन आगे चलता है। अतः इस प्रकार फरवरी क्रांति 12 मार्च को और अक्टूबर क्रांति 7 नवंम्बर को संपन्न हुई थी।

रूस की क्रांति

👉 रूस में सम्राट (राजा) को जार कहा जाता था। और रूसी क्रांति के समय रूस का जार निकोलस द्वितीय था। जो रोमनोव राजवंश का निरंकुशवादी शासक था। और इसकी पत्नी का नाम जरीना था। तथा इसके राजमहल का नाम सेंट पीटर्सबर्ग (पेट्रोग्राड या लेनिनग्राद) था।

रूसी क्रांति के कारण

(i) जार की निरंकुशता = फ्रांस की राज्य क्रांति के बाद संपूर्ण विश्व से राजतंत्र खत्म हो रहे थे, लेकिन जार निकोलस द्वितीय अपना विशेषाधिकार छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। और इसको आम लोगों के सुख-दुख की कोई चिंता नहीं थी।

(ii) कृषकों की दयनीय स्थिति = रूस में 1861 ईस्वी में जार एलेक्जेंडर द्वितीय द्वारा कृषक दास प्रथा को समाप्त किया गया। लेकिन रूस में अत्यधिक जनसंख्या कृषकों का था। लेकिन इनकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी। इनके खेत बहुत छोटे-छोटे थे, जिन पर वे पुराने ढंग से खेती करते थे। और इनके पास पूँजी का भी अभाव था तथा करों के बोझ से वे दबे हुए थे।

(iii) मजदूरों की दयनीय स्थिति = मजदूरों को अधिक काम करना पड़ता था और मजदूरी भी काफी कम थी। इनके साथ दुर्व्यवहार भी किया जाता था। और यह हड़ताल भी नहीं कर सकते थे।

(iv) रूसीकरण की नीति = रूस में फिन, पोल, जर्मन, यहूदी आदि अन्य जातियों के लोग रहते थे। लेकिन मुख्यतः स्लाव जाति के लोग थे। और राजा ने देश के सभी लोगों पर रूसी भाषा, शिक्षा और संस्कृति लादने का प्रयास किया। जार की नीति– “एक जार, एक चर्च और एक रूस” |

(v) विदेशी घटनाओं का प्रभाव = रूस ने क्रीमिया और जापान दोनों देशों के साथ युद्ध किया। और हार गया। क्रीमिया और जापान जैसे छोटे से देश से हारने के कारण महानता का भ्रम टूट गया। और जापान से हारने के बाद रूस में 1905 की क्रांति हुई।

1905 की रूसी क्रांति

जापान से पराजय के बाद 22 जनवरी 1905 को क्रांतिकारियों का समूह ‘रोटी दो‘ के नारे के साथ सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए सेंट पीटर्सबर्ग जा रहे थे। तब जार की सेना ने इन निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसा दी जिसमें हजारों लोग मारे गए। इसलिए 22 जनवरी 1905 (पुराने कैलेंडर में 9 जनवरी 1905) को खूनी रविवार (लाल रविवार) के नाम से जाना जाता है। विद्रोहियों को नियंत्रित करने के लिए 1905 में ड्यूमा नामक एक संस्था का गठन हुआ। लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला।

(vi) रूस में मार्क्सवाद का प्रभाव = रूस के मजदूरों पर कार्ल मार्क्स के समाजवादी विचारों का बहुत प्रभाव था। और रूस का पहला साम्यवादी प्लेखानोव था, जो रूस में जारशाही की निरंकुशता समाप्त करके साम्यवादी व्यवस्था की स्थापना चाहता था। इसलिए इसने 1898 ई० (कही 1883 ईस्वी) में रशियन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (रूसी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी) की स्थापना की।

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👉 1903 में यह पार्टी दो भाग में बंट गया। बहुमतवाला दल ‘बोल्शेविक’ और अल्पमतवाला दल ‘मेनशेविक’ कहलाया। मेनशेविक मध्यवर्गीय क्रांति के पक्षधर थे और बोल्शेविक सर्वहारा क्रांति के पक्षधर थे । इसके अतिरिक्त 1901 ई० में ‘सोशलिस्ट रिवोल्यूशनरी पार्टी’ का गठन हुआ, जो किसानों की माँगों को उठाती थी।

>> लियो टॉलस्टाय ने वार एंड पीस (युद्ध और शांति) नामक पुस्तक लिखी। तथा इस पुस्तक द्वारा लोगों को जागरूक करने का काम किया।

👉 ईवान तुर्गनेव ने फादर्स एंड सन्स (Fathers and Sons) नामक पुस्तक लिखी। जिसमें युवाओं को अत्याचारों का डटकर मुकाबला करने को कहा। मैक्सिम गोर्की के पुस्तक माँ (The Mother) में रूस की दयनीय स्थिति को बताया गया है।

(vii) तात्कालिक कारण (प्रथम विश्व युद्ध में रूस की पराजय) = प्रथम विश्व युद्ध में रूस मित्र राष्ट्र की ओर से शामिल हो गया। इम युद्ध में सम्मिलित होने का एकमात्र उद्देश्य था कि रूसी जनता का आंतरिक असंतोष भुलाकर बाहरी मामलों में उलझाना। लेकिन अच्छे हथियार और पर्याप्त भोजन नहीं होने के कारण रूस हार गया।

>> रासपुटिन एक भ्रष्ट पादरी थी, जो जार निकोलस द्वितीय का गुरु था। इसने जरीना के साथ मिलकर षडयंत्र करना शुरू कर दिया।

1917 की फरवरी (मार्च) क्रांति

प्रथम विश्व युद्ध में हार जाने के बाद 7 मार्च 1917 ई. को पेट्रोग्राड (वर्तमान लेनिनग्राद) की सड़कों पर किसान तथा मजदूरों ने रोटी दो के नारे लगाते हुए जुलूस निकालने लगे।

अगले दिन 8 मार्च को कपड़े की मिलों की महिलाएं मजदूरों ने बहुत सारे कारखानों में रोटी की मांग करते हुए हड़ताल का नेतृत्व किया। इसलिए सन् 1975 ईस्वी में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया गया।

सरकार ने सेना को उनपर गोली चलाने का आदेश दिया, लेकिन सेना ने जनता का साथ दिया। जिससे जनता का साहस बहुत बढ़ गया। फलतः विवश होकर 12 मार्च 1917 को जार निकोलस द्वितीय ने गद्दी त्याग दी। और जुलाई 1918 को जार, जरीना तथा इसके प्रियजनों को गोली मार दिया गया।

इस तरह से रूस से रोमनोव वंश का अन्त हो गया। और इसके बाद 15 मार्च 1917 को रूस में जॉर्ज लोबाव के नेतृत्व में एक सरकार बना। लेकिन यह जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका।

बोल्शेविक क्रांति (नवंबर 1917)

इसके बाद रूस में अलेक्जेंडर केरेंसकी के नेतृत्व में एक सरकार बना। किंतु यह भी जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका।

जब 1917 ईस्वी में लेनिन स्विट्ज़रलैंड से वापस रूस आया, तो लेनिन ने घोषणा किया कि क्रांति अभी पूरी नहीं हुई है तथा दूसरी क्रांति अनिवार्य है। सेना और जनता दोनों ने लेनिन का साथ दिया।

इसके बाद 7 नवंबर 1917 (25 अक्टूबर 1917) को बोल्शेविको ने रेलवे स्टेशन, बैंक, सरकारी भवन आदि पर अधिकार कर लिया। अंत में केरेंसकी रुस छोड़ कर भागना पड़ा। इसी घटना को बोल्शेविक क्रांति (अक्टूबर क्रांति) कहते है।

इसके बाद शासन की बागडोर बोल्शेविको के हाथ में आ गई, इसका अध्यक्ष लेनिन को बनाया गया तथा ट्रॉटस्की को युद्ध मंत्री (विदेश मंत्री) बनाया गया।

लेनिन ने बोल्शेविक दल का कार्यक्रम प्रस्तुत किया, जो आगे चलकर अप्रैल थीसिस के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस क्रांति में लेनिन ने तीन नारे दिए – भूमि, शांति और रोटी।

लेनिन

(i) लेनिन का पूरा नाम व्लादिमीर इलिच उलियानोव था, लेकिन यह व्लादिमीर इवानोविच लेनिन के नाम से प्रसिद्ध थे।

(ii) इनका जन्म 22 अप्रैल 1870 को वोल्गा नदी के किनारे स्थित सिमब्रस्क नामक गाँव में हुआ था।

(iii) इनके बड़े भाई को जार एलेक्जेंडर की हत्या के आरोप में गोली मार दी गई थी। इसलिए लेनिन जारशाही को अपना कट्टर दुश्मन मानते थे।

(iv) आगे चलकर मार्क्सवादी विचार से प्रभावित हुए और बोल्शेविक दल का नेता बन गए। 21 जनवरी 1924 को इनकी मृत्यु हो गई।

लेनिन द्वारा किया गया काम

(i) सर्वप्रथम लेनिन ने प्रथम विश्वयुद्ध से बाहर होने के लिए जर्मनी के साथ ब्रेस्टलिटोवस्क की संधि की।

(ii) इस संधि में रूस को लगभग एक चौथाई भूभाग गवाना पड़ा, परंतु लेनिन प्रथम विश्वयुद्ध से बाहर हो गया तथा उसने अब अपने देश की आंतरिक समस्याओं पर अपना ध्यान केंद्रित किया।

(iii) लेनिन ने बाह्य विरोधियों का सामना करने के लिए ट्रॉटस्की के नेतृत्व में एक विशाल लाल सेना का गठन करवाया तथा दूसरी तरफ आंतरिक विद्रोह को दबाने के लिए चेका नामक गुप्त पुलिस संगठन बनाया।

(iv) सन् 1918 ईस्वी में रूस का नया संविधान बनाया गया इसके द्वारा रूस का नया नाम ‘सोवियत समाजवादी गणराज्यों का समूह’ (USSR) और सोवियत संघ रखा गया।

(v) लेनिन के नए संविधान ने 18 वर्ष से अधिक उम्र वाले सभी नागरिकों को मताधिकार प्रदान किया।

(vi) जमीन को सामाजिक संपत्ति घोषित कर दिया गया तथा किसानों को सामंतों की जमीन पर कब्जा करने का खुला छूट दे दीया गया।

(vii) लेनिन ने बोल्शेविक दल का नाम बदलकर ‘रूसी कम्युनिस्ट पार्टी‘ कर दिया और लाल रंग के झंडे पर हंसुआ और हथौड़े को सुशोभित कर देश का राष्ट्रीय झंडा तैयार किया। उसके बाद से यह झण्डा, साम्यवाद का प्रतीक बन गया।

आगे चलकर लेनिन बलपूर्वक किसानों से अनाजों की वसूली लगा और फैक्ट्री के श्रमिकों के आंदोलन पर प्रतिबंध लगा दिया। वसूली के डर से किसानों ने अपना अनाज को जलाना शुरू कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप 1920-21 में उत्पादन का स्तर काफी नीचे गिर गया, जिससे भुखमरी की समस्या उत्पादन हुई और लोगों ने आंदोलन करना शुरू कर दिया। तब लेनिन ने अपनी नीति में संशोधन किया और एक नई आर्थिक नीति (NEP) लाया।

नई आर्थिक नीति (NEP– New Economic Policy)

👉 लेनिन ने 1921 ईस्वी में एक नीति लाया, जिसे नई आर्थिक नीति कहते है। इसमें निम्नलिखित बाते थी।

(i) किसानों से अनाज लेने के स्थान पर एक निश्चित कर लगा दिया।
(ii) जमीन राज्य का होगा, लेकिन उपयोग किसान करेंगे
(iii) 20 से कम कर्मचारियों वाले उद्योगों को व्यक्तिगत रूप से चलाने का अधिकार मिल गया।
(iv) विदेशी पूँजी सीमित तौर पर आमंत्रित की गई।
(v) व्यक्तिगत संपत्ति और जीवन की बीमा भी राजकीय ऐजेंसी द्वारा शुरू किया गया।
(vi) विभिन्न स्तरों पर बैंक खोले गए।

इसके बाद पुनः उत्पादन में वृद्धि होने लगी। लेनिन का कथन “तीन कदम आगे बढ़कर एक कदम पीछे हटना-फिर भी दो कदम आगे रहने के समान है।

जोसेफ स्टालिन

(i) 1924 में जब लेनिन की मृत्यु हुई, तो उसके उत्तराधिकारी के रूप में जोसेफ स्टालिन नियुक्त हुआ, जो उस समय कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव था।

(ii) जोसेफ स्टालिन सन् 1953 ईस्वी में अपनी मृत्यु तक रूस में तानाशाही शासन करता रहा। इसने 1929 ईस्वी में ट्रॉटस्की को निर्वासित (निकाल) कर दिया। और 1930 ईस्वी में सभी नेता को खत्म करवा दिया, जिसने क्रांति में भाग लिया था।

(iii) उसके प्रयास से रूस विश्व के मानचित्र पर एक शक्तिशाली देश के रूप में सामने आया। और औद्योगिक तथा विज्ञान उन्नति कर शिखर पर पहुंच गया।

(iv) द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने से पहले ही रूस को एक महान शक्ति माना जाने लगा।

रूसी क्रांति का प्रभाव

(i) सर्वहारा वर्ग के सम्मान में वृद्धि हुई।
(ii) रूस के समान अनेक देशों में साम्यवादी सरकारों की स्थापना हुई।
(iii) शीतयुद्ध आरम्भ हुआ।
(iv) विचारधारा के आधार पर विश्व और यूरोप दो खेमों में विभक्त हो गया।
(v) एशिया और अफ्रीका में साम्यवाद का पतन हुआ तथा उपनिवेश मुक्ति आंदोलन शुरू हुआ।

👉 मिखाइल गोर्वाचोव 1985 ई० में राष्ट्रपति बने। इन्होंने पेरेस्त्रेइका (पुनर्गठन) तथा ग्लासनोस्त (खुलापन) की अवधारणा पेश की।

>> सोवियत संघ का विघटन दिसम्बर 1991 ई० में हुआ।

प्रश्न 6. शीतयुद्ध से आप क्या समझते है?
उत्तर– वैसा युद्ध जिसमें किसी भी प्रकार का अस्त्र शस्त्र का प्रयोग नही किया जाता है, फलतः बातो-बात के द्वारा एक-दूसरे राष्ट्र को नीचा दिखाने का वातावरण तैयार किया जाता है, उसे शीत युद्ध (वाक् युद्ध) कहते है।

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पूँजीवादी राष्ट्रों और रूस के बीच इसी प्रकार का शीतयुद्ध चलता रहा।

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दोस्तों उम्मीद करता हूं कि ऊपर दिए गए कक्षा 10वीं के इतिहास के पाठ 02 समाजवाद और साम्यवाद (samajwad aur samyavad) का नोट्स और उसका प्रश्न को पढ़कर आपको कैसा लगा, कॉमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद !

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