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Bihar Board Ncert Class 10th Social Science Economics Chapter 2 Notes राज्य एवं राष्ट्र की आय | rajya evam rashtra ki aay Objective & Notes

आज के इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 10वीं अर्थशास्त्र का पाठ ‘राज्य एवं राष्ट्र की आय’ का नोट्स को देखने वाले है। rajya evam rashtra ki aay

Bihar Board Ncert Class 10th Social Science Economics Chapter 2 Notes राज्य एवं राष्ट्र की आय | rajya evam rashtra ki aay Objective & Notes

राज्य एवं राष्ट्र की आय

प्रश्न 1. आय किसे कहते हैं?
उत्तर– जब कोई व्यक्ति किसी प्रकार का शारीरिक अथवा मानसिक कार्य करता है और उस व्यक्ति को उसके कार्यों के बदले जो पारिश्रमिक (मजदूरी) मिलता है, उसे उस व्यक्ति की आय कहते है।

👉 भूमि से लगान के रूप में, श्रम से मजदूरी के रूप में, पूँजी से ब्याज के रूप में, व्यवस्थापक से वेतन के रूप में तथा उद्यमी से ‘लाभ’ या ‘हानि’ के रूप में आय प्राप्त होता है।

बिहार की आय

☞ बिहार अत्यंत गरीब एवं पिछड़ा राज्य है। 2009 के एक आँकड़ों के अनुसार बिहार पूरे देश में उड़ीसा के बाद सर्वाधिक गरीब राज्य है। यहाँ की 41.4 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करती है। और बिहार की प्रतिव्यक्ति आय भी बहुत कम है।

⪼ रैगनर नर्क्स का कथन था कि “गरीबी गरीबी को जन्म देती है।” तथा इन्होंने गरीबी के कुचक्र की धारणा को भी बतलाया है।

प्रश्न 2. गरीबी, गरीबी को जन्म देती है। कैसे?
उत्तर– गरीब के पास आय की कमी होती है, जिस कारण वह शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता है। शिक्षा और अज्ञानता के कारण वह बच्चों को अधिक जन्म देता है। फलत: अधिक जनसंख्या बढ़ने के कारण उनकी अगली पीढ़ी और अधिक गरीब हो जाती है। और इस प्रकार गरीबी का यह कुचक्र लगातार चलता रहता है।

प्रश्न 3. राष्ट्रीय आय (National Income) किसे कहते हैं?
उत्तर– किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं से प्राप्त किए गए कुल धन को राष्ट्रीय आय कहा जाता है।

जिस देश का राष्ट्रीय आय अधिक होता है वह देश विकसित कहलाता है, और जिस देश का राष्ट्रीय आय कम होता है वह अविकसित कहलाता है।

राष्ट्रीय आय की अन्य परिभाषा

☞ प्रो० अलफ्रेड मार्शल के अनुसार = जब देश किसी में श्रम, पैसा (पूँजी) और प्राकृतिक साधनों का इस्तेमाल करके वस्तुएं और सेवाएँ बनाए जाते है, तो एक साल में जो भी कुल वस्तुएं (सामान + सेवाएँ) बनती हैं, वही राष्ट्रीय आय कहलाती है।

ट्रिक – “श्रम + पूँजी + प्राकृतिक साधन = वस्तुएँ और सेवाएँ (राष्ट्रीय आय)

⪼ प्रो० पोगू के अनुसार = किसी देश की सारी वस्तुएं और सेवाएँ जो पैसा कमा सकती हैं, तथा इसमें विदेशों से मिली आय को भी जोड़ लिया जाता है, तो राष्ट्रीय आय प्राप्त होता है।

ट्रिक – “देश की कुल आमदनी + विदेश की कमाई = राष्ट्रीय आय

➣ प्रो० फिशर के अनुसार = एक साल में जितना वस्तु का उत्पादन होता है, उसमें से जितना उपभोग कर लिया गया है, वही वास्तविक राष्ट्रीय आय होती है।

ट्रिक – “साल में पैदा हुआ उत्पादन – बचा नहीं, जो खा लिया गया वही राष्ट्रीय आय!

☞ प्रो० केन्स के अनुसार जितना पैसा उपभोक्ता चीज़ों पर खर्च हुआ, और जितना पैसा उद्योग या निर्माण (विनियोग) पर खर्च हुआ, दोनों को जोड़कर हम राष्ट्रीय आय निकालते हैं।

ट्रिक – “जो कुछ खर्च हुआ (उपभोग + निवेश) = राष्ट्रीय आय

फार्मूले के रूप में

Y = C + I

जहाँ, Y = राष्ट्रीय आय, C = उपभोग, I = निवेश

राष्ट्रीय आय की धारणा

(i) सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product) = किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल बाजार या मौद्रिक मूल्य को उस देश का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहा जाता है।

(ii) कुल या सकल राष्ट्रीय उत्पादन (Gross National Product) = सकल घरेलू उत्पादन में देशवासियों द्वारा विदेश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को जोड़ दिया जाता है तथा विदेशियों द्वारा देश में उत्पादित वस्तुओं के मूल्य को घटा दिया जाता है तो सकल राष्ट्रीय उत्पादन (GNP) प्राप्त होता है।

(iii) शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन (Net National Product) = कुल राष्ट्रीय उत्पादन को प्राप्त करने के लिए हमें कुछ खर्च करना पड़ता है। अतः कुल राष्ट्रीय उत्पादन में से इन खर्चों को घटा देने से जो शेष बचता है, उसे शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन (NNP) कहते है।

भारत का राष्ट्रीय आय – ऐतिहासिक परिवेश

(i) भारत में पहली बार राष्ट्रीय आय की गणना दादा भाई नौरोजी ने 1868 ईस्वी में की थी।

(ii) दादा भाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक पॉवर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया में भारत का प्रति व्यक्ति आय 20 रुपया बताया।

(iii) इसके बाद 1925-29 के बीच भारत के राष्ट्रीय आय का आकलन प्रसिद्ध अर्थशास्त्री Dr. V. K. R.V. Rao के द्वारा किया गया था।

(iv) स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने अगस्त 1949 ई० में प्रो० पी० सी० महालनोबिस की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आय समिति का गठन किया था।

(v) राष्ट्रीय आय समिति ने अप्रैल 1951 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। जिसमें सन् 1948-49 में देश की कुल राष्ट्रीय आय 8,650 करोड़ रुपया तथा प्रति व्यक्ति आय 246.9 रुपया बताया।

(vi) इसके बाद देश में राष्ट्रीय आय की गणना के लिए केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) की स्थापना 1954 ईस्वी में की गई।

(vii) भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक को कहा जाता है।

प्रश्न 4. प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) किसे कहते हैं?
उत्तर– राष्ट्रीय आय को देश की कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है, वह प्रति व्यक्ति आय कहलाता है।

प्रति व्यक्ति आय = राष्ट्रीय आय/कुल जनसंख्या

(i) देश की आय के मानक को निर्धारित करने वाली संस्था डायरेक्टोरेट ऑफ इकोनॉमिक्स एंड स्टेटिस्टिक्स है। इसने 16 सितंबर 2008 को एक आंकड़ा जारी किया।

(ii) इस आंकड़े के अनुसार सन् 2008-09 में भारत का प्रति व्यक्ति आय 25,494 रुपया था। जबकि सन् 2005-06 में बिहार का प्रति व्यक्ति आय 6,610 रुपया था।

(iii) भारत में सर्वाधिक प्रतिव्यक्ति आय गोवा (54,850 रुपया) और दिल्ली (50,565 रुपया) का है। और चंडीगढ़ का प्रतिव्यक्ति आय 70,361 रुपया था।

(iv) बिहार के शिवहर जिले का प्रतिव्यक्ति आय कम तथा पटना जिले का प्रतिव्यक्ति आय अधिक है।

राष्ट्रीय आय की गणना की प्रमुख विधि

(i) उत्पादन गणना विधि = जब राष्ट्रीय आय की गणना उत्पादन के योग के आधार पर किया जाता है, तो उसे उत्पादन गणना विधि कहते है।

(ii) आय गणना विधि = जब राष्ट्रीय आय की गणना व्यक्तियों की आय के आधार पर किया जाता है, तो उसे आय गणना विधि कहते है।

(iii) व्यय गणना विधि = जब राष्ट्रीय आय की गणना व्यक्तियों के अपने व्यय (खर्च) के आधार पर किया जाता है, तो उसे व्यय गणना विधि कहते है।

(iv) मूल्य योग विधि = जब उत्पादित की हुई वस्तुओं का मूल्य विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्तियों के द्वारा किए गए प्रयोग से बढ़ जाता है, ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय आय की गणना को मूल्य योग विधि कहते है।

(v) व्यावसायिक गणना विधि = जब राष्ट्रीय आय की गणना व्यावसायिक (नौकरी) के आधार पर किया जाता है, तो उसे व्यावसायिक गणना विधि कहते है।

राष्ट्रीय आय की गणना में होनेवाली कठिनाईयों

(i) आकड़ो को एकत्र करने में कठिनाई :- आँकड़ों को एकत्र करने में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं। और यदि सही आँकड़े उपलब्ध नहीं हो तो राष्ट्र के विकास की सही स्थिति नहीं प्राप्त होती है।

(ii) दोहरी गणना की सम्भावना :- कभी-कभी एक ही आय या उत्पाद को दो स्थान पर अंकित कर दिया जाता है, जिस कारण वास्तविक आय से अधिक आय दिखने लगती है।

(iii) मूल्य के मापने में कठिनाई :- बाजार में प्रायः हम यह देखते कि एक ही वस्तु का कई व्यापारिक स्थितियों से गुजरने के कारण उस वस्तु के मूल्य में विभिन्नता आती है।

विकास में राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय का योगदान

👉 जब राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है, तो समाज के आर्थिक विकास में भी वृद्धि होती है। तथा राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय कमी होने से समाज की आर्थिक विकास में भी कमी होती है।

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दोस्तों उम्मीद करता हूं कि ऊपर दिए गए कक्षा 10वीं के अर्थशास्त्र के पाठ 02 राज्य एवं राष्ट्र की आय (rajya evam rashtra ki aay) का नोट्स और उसका प्रश्न को पढ़कर आपको कैसा लगा, कॉमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद ! rajya evam rashtra ki aay

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