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Bihar Board Ncert Class 10th Social Science Economics Chapter 3 Notes मुद्रा, बचत एवं साख | mudra bachat evam sakh Objective & Notes

आज के इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 10वीं अर्थशास्त्र का पाठ ‘मुद्रा, बचत एवं साख’ का नोट्स को देखने वाले है। mudra bachat evam sakh

Bihar Board Ncert Class 10th Social Science Economics Chapter 3 Notes मुद्रा, बचत एवं साख | mudra bachat evam sakh Objective & Notes

मुद्रा, बचत एवं साख

प्रश्न 1. मुद्रा (Currency) किसे कहते है?
उत्तर – धन का वह रूप जिससे लोग वस्तु का क्रय या विक्रय कर अपनी आवश्यकता की पूर्ति करते हैं, उसे मुद्रा कहते है। भारत की मुद्रा रुपया है। और रुपया पहली बार 1540 से 45 के आसपास शेरशाह सूरी द्वारा जारी किया गया था।

मुद्रा का अन्य परिभाषा

☞ मार्शल ने कहा है कि “आधुनिक युग की प्रगति का श्रेय मुद्रा को जाता है। क्योंकि बिना मुद्रा के व्यापार और लेनदेन संभव नहीं है।

⪼ मार्शल ने कहा कि “मुद्रा वह धूरी है, जिसके चारों ओर संपूर्ण आर्थिक विज्ञान चक्कर काटता है

➣ मुद्रा के आर्थिक महत्व के बारे में ट्रेस्कॉट ने कहा कि, “यदि मुद्रा हमारी अर्थव्यवस्था का हृदय नहीं तो रक्त प्रवाह अवश्य है।

अर्थात्

ट्रेस्कॉट कहते हैं कि मुद्रा हमारे जीवन और अर्थव्यवस्था का सबसे जरूरी हिस्सा है। अगर हम मुद्रा को शरीर के साथ जोड़कर देखें, तो यह शरीर के रक्त की तरह है। जैसे शरीर में रक्त के बिना जीवन संभव नहीं, वैसे ही मुद्रा के बिना अर्थव्यवस्था नहीं चल सकती।

⪼ क्राउथर का कहना था कि “मनुष्य के सभी आविष्कारों में मुद्रा का आविष्कार एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। अर्थात् जिस तरह विज्ञान में अग्नि और राजनीतिशास्त्र में वोट का स्थान है, उसी प्रकार मानव के आर्थिक जीवन में मुद्रा का स्थान है।

➣ प्रो० हार्टले बिट्स ने बताया है कि “मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करती है।

👉 नैप के अनुसार “कोई भी वस्तु जो राज्य द्वारा मुद्रा घोषित की जाती है, वह मुद्रा कहलाती है

☞ सेलिगमैन का कहना है कि “मुद्रा वह वस्तु है जिसे सभी लोग बिना झिझक के स्वीकार कर लें।

⪼ प्रो० पिगू ने कहा कि “आधुनिक विश्व में उद्योग मुद्रा रूपी वस्त्र धारण किए हुए है

👉 विनिमय के दो तरीके होते है।

(i) वस्त विनिमय प्रणाली (Barter system) = वैसी प्रणाली जिसमें लोग वस्तु से वस्तु का लेन देन कर अपनी आवश्यकता की पूर्ति करते है, उसे वस्तु विनिमय प्रणाली कहते है।

(ii) मौद्रिक प्रणाली = वैसी प्रणाली जिसमें लोग मुद्रा से वस्तुओं का क्रय या विक्रय कर अपनी आवश्यकता की पूर्ति करते हैं, उसे मौद्रिक प्रणाली कहते है।

वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ

(i) आवश्यकता के दोहरे संयोग का अभाव:- वस्तु विनिमय प्रणाली में दोनों व्यक्तियों को एक-दूसरे की चीज़ की जरूरत एक साथ होनी चाहिए। जैसे अगर मुझे दूध चाहिए और आपके पास दूध नहीं है, तो विनिमय नहीं हो पाएगा।

(ii) मूल्य के सामान्य मापक का अभाव:- इसमें वस्तुओं की कीमत तय करने का कोई तरीका नहीं था। इसलिए हर बार चीज़ों का अलग-अलग मोलभाव करना पड़ता है।

(iii) मूल्य-संचय का अभाव:- इसमें वस्तुएँ जल्दी खराब या नष्ट हो जाती थी। इस वजह से चीज़ों को लंबे समय तक जमा करके रखना में मुश्किल होता है।

(iv) सह विभाजन का अभाव:- सभी चीजें बराबर या छोटे-छोटे हिस्सों में नहीं बांटी जा सकतीं थी। इससे वस्तु विनिमय में दिक्कत होती है। जैसे गाय को छोटा नहीं कर सकते थे, लेकिन गेहूं को बांटा जा सकता था।

(v) भविष्य के भुगतान की कठिनाई:- अगर किसी ने उधार लिया है, तो बाद में उसका हिसाब-किताब करना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि चीजों की कीमत तय नहीं होती।

(vi) मूल्य हस्तांतरण की समस्या:- कुछ वस्तुएं भारी या नाजुक होती थी, जिस कारण एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में कठिनाई होती थी।

मुद्रा के कार्य

(i) विनिमय का माध्यम:- मुद्रा विनिमय का एक माध्यम है। जिसके द्वारा हम किसी वस्तु को आसानी से खरीद या बेच सकते है। मुद्रा के द्वारा किसी भी समय विनिमय किया जा सकता है।

(ii) मूल्य का मापक:- मुद्रा मूल्य का मापक है। मुद्रा की मदद से हम किसी भी वस्तुओं का दाम तय कर पाते हैं। उदाहरण: 1 किलो गेहूं की कीमत 30 रुपए और 1 किलो चीनी की कीमत 40 रुपए है।

(iii) विलंबित भुगतान का मान:- मुद्रा विलंबित भुगतान का एक सरल साधन है। इसके द्वारा ऋण के भुगतान करने में भी काफी सुविधा हुई है। जब कोई उधार लेता है और बाद में चुकाता है, तो उसे बाद में उतने ही मुद्रा लौटाना होगा, जितना उसने उधार लिया था।

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(iv) मूल्य का संचय:- मुद्रा को हम अपने पास सुरक्षित रख सकते हैं, ताकि जब जरूरत हो तब खर्च करें। जैसे – हम पैसे बचाकर रखते हैं और भविष्य में कुछ खरीदने के लिए इस्तेमाल करते हैं।

☞ मुद्रा को संचित या जमा करके रखा जा सकता है, लेकिन वस्तु विनिमय प्रणाली में संचय करके रखने में कठिनाई होती थी। वस्तुओं के सड़-गल जाने या नष्ट हो जाने का डर बना रहता था।

(v) क्रय-शक्ति का हस्तांतरण:- जब हम किसी को पैसे देते हैं, तो हम अपनी खरीदने की ताकत (क्रय-शक्ति) भी उसे दे देते हैं। अगर तुमने 50 रुपए किसी को दिए, तो अब वह 50 रुपए खर्च कर सकता है – मतलब उसकी क्रय-शक्ति बढ़ गई।

⪼ लेकिन हमारी क्रय-शक्ति कम हो गई क्योंकि पैसे हमारे पास नहीं रहे। मुद्रा के माध्यम से क्रय-शक्ति को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित किया जा सकता है।

(vi) साख का आधार:- मुद्रा साख के आधार पर कार्य करती है। मुद्रा के कारण ही साख पत्रों (जैसे-चेक, ड्राफ्ट, हुण्डी) का प्रयोग बड़े पैमाने पर होता है। जब बैंक में जमा कर्ता के खाता में पर्याप्त मुद्रा होती है, तभी जमा कर्ता चेक का प्रयोग करता है।

मुद्रा का विकास

(i) वस्तु विनिमय :- इसमें वस्तु का वस्तु से लेन-देन होता था।
(ii) वस्तु मुद्रा :- प्रारंभिक काल में किसी एक वस्तु को मुद्रा के रूप में चुना गया तथा इसका उपयोग किया जाता था। जैसे– कौड़ी
(iii) धात्विक मुद्रा :- धातु (पीतल या तांबा) से बने मुद्रा को धात्विक मुद्रा कहते है।
(iv) सिक्का :- सोने या चाँदी से बना वह वस्तु जो देश की सरकार की मुहर से चालित होता है, उसे सिक्का कहते हैं।
(v) पत्र मुद्रा :- सिक्का को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में अनेक कठिनाई होती थी। इसलिए पत्र मुद्रा का विकास हुआ।

☞ देश के केंद्रीय बैंक के द्वारा जारी कागज के नोट को पत्र-मुद्रा (कागजी मुद्रा) कहते है।

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⪼ भारत में एक रुपया के कागजी नोट तथा सभी सिक्के केन्द्र सरकार के वित्त विभाग के द्वारा जारी किया जाता है। तथा दो रुपए या इससे अधिक के सभी कागजी नोट देश के केन्द्रीय बैंक (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) के द्वारा जारी किया जाता हैं।

(vi) साख मुद्रा:- जब साख पत्र (चेक, हुंडी) का उपयोग मुद्रा के रूप में किया जाता है, तो उसे साख मुद्रा कहते है। अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन साख मुद्रा द्वारा ही होता है।

प्लास्टिक मुद्रा = वर्तमान समय में प्लास्टिक मुद्रा में एटीएम सह डेबिट कार्ड तथा क्रेडिट कार्ड प्रसिद्ध है।

(i) ATM (Automatic Teller machine) = ATM एक प्रकार का प्लास्टिक का डेबिट कार्ड होता है, जिसके द्वारा बैंक के केंद्र से पैसा को निकला या जमा किया जा सकता है। इससे स्वचालित टेलर मशीन भी कहते है। और यह 24 घंटे सेवा देता है।

डेबिट कार्ड:- डेबिट कार्ड बैंक द्वारा दिया जाने वाला एक प्रकार का प्लास्टिक का कार्ड होता है, जिसके द्वारा कोई व्यक्ति बैंक में जमा अपनी राशि का उपयोग कर सकता है।

(ii) क्रेडिट कार्ड:- क्रेडिट कार्ड बैंक द्वारा दिया जाने वाला एक प्रकार का प्लास्टिक का कार्ड होता है, जिसके द्वारा बैंक अपने धारक को रुपया उधार देता है। क्रेडिट कार्ड में VISA, मास्टर कार्ड, अमेरिकन एक्सप्रेस आदि प्रसिद्ध हैं।

मुद्रा से लाभ

(i) मुद्रा से उपभोक्ता को लाभ:- उपभोक्ता मुद्रा से अपनी जरूरत की वस्तुएं आसानी से खरीद सकता है। तथा मुद्रा से वस्तुओं का आदान-प्रदान आसान हो जाता है।

(ii) मुद्रा से उत्पादक को लाभ:- मुद्रा की सहायता से उत्पादक अपनी वस्तुएं बेचकर तुरंत पैसे कमा सकता है। तथा उसी पैसे का उपयोग पुनः नए सामान बनाने में कर सकता है।

(iii) मुद्रा और साख (क्रेडिट):- मुद्रा के आधार पर लोग उधार (कर्ज) ले सकते हैं। मुद्रा से व्यापार बढ़ता है, जिससे आर्थिक तरक्की होती है। मुद्रा साख के आधार पर कार्य करती है। मुद्रा के कारण ही साख पत्रों (जैसे-चेक, ड्राफ्ट, हुण्डी) का प्रयोग बड़े पैमाने पर होता है।

(iv) वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों का निराकरण:- मुद्रा के आविष्कार से वस्तु विनिमय प्रणाली की सारी कठिनाइयाँ दूर हो गयी है। अब मुद्रा के कारण विनिमय आसान हो गया है।

(v) मुद्रा और पूँजी की तरलता:- मुद्रा को तुरंत इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन पूँजी (जैसे जमीन या मशीन) को तुरंत नहीं बेचा जा सकता है। इसलिए मुद्रा को तरल पूँजी कहा जाता है।

वस्तुओं के प्रकार

(i) चालू वस्तुएँ:- वैसे वस्तु जिनका हम तुरंत इस्तेमाल कर लेते हैं, उसे चालू वस्तुएँ कहते है। जैसे- खाना, कपड़े आदि।

(ii) टिकाऊ वस्तुएँ:- वैसे वस्तु जो लंबे समय तक काम आती हैं, उसे टिकाऊ वस्तुएँ कहते है। जैसे- मशीन, मकान आदि।

☞ जो पैसा चालू वस्तुओं पर खर्च होता है, उसे उपभोग कहते है। और जो पैसा टिकाऊ वस्तुओं पर खर्च होता है, उसे बचत कहते हैं।

प्रश्न 2. बचत किसे कहते है?
उत्तर – आय (कुल कमाई) और उपभोग (खर्च) के अंतर को बचत कहते है।

⪼ क्राउथर ने कहा, “किसी व्यक्ति की बचत उसकी आय का वह हिस्सा है जो उपभोग पर खर्च नहीं होता।

☞ बचत दो प्रकार के होते है

(i) नगद बचत:- वैसा पैसा जो किसी वस्तु पर खर्च नहीं किया जाता, बस रखा जाता है, उसे नगद बचत या संचय कहते है।

(ii) वस्तु संचय:- टिकाऊ वस्तुओं को खरीदकर रखने को वस्तु संचय कहते है।

बचत करने की शक्ति

👉 बचत करने की शक्ति का मतलब होता है कि लोग अपनी कमाई का कुछ हिस्सा खर्च नहीं करके बचा लेते हैं। जब हम बचत करते हैं, तो भविष्य में किसी भी ज़रूरत या संकट के समय उसका उपयोग कर सकते हैं। बचत से हम बड़ी चीज़ें खरीद सकते हैं या मुश्किल वक्त में पैसों की परेशानी को दूर कर सकते हैं। इसी वजह से बचत करना हमारी आर्थिक सुरक्षा को मजबूत बनाता है।

बचत करने की इच्छा

☞ बचत करने की इच्छा का मतलब होता है कि लोग अपनी आय का कुछ हिस्सा खर्च करने की बजाय सुरक्षित रखने की सोच रखते हैं। यह इच्छा हमें भविष्य में आने वाली ज़रूरतों और मुश्किल हालात के लिए तैयार रखती है। जब लोगों में बचत करने की आदत और इच्छा होती है, तो वे अपने परिवार और खुद को आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस करते हैं।

साख

⪼ साख को पूँजीवादी व्यवस्था का आधार स्तंभ कहा जाता है। साख का पर्यायवाची शब्द ‘क्रेडिट’ है। इसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘क्रेडों’ शब्द से हुई है। जिसका अर्थ विश्वास या भरोसा है। जब लोग एक-दूसरे पर भरोसा करते हैं कि पैसा वापस मिल जाएगा, तो उधार लेना और देना आसान हो जाता है।

प्रश्न 3. साख किसे कहते है?
उत्तर – साख एक ऐसा लेन-देन है, जिसमें वस्तु या पैसा तुरंत नहीं चुकाया जाता है, बल्कि एक तय समय के बाद चुकाया जाता है।

➣ प्रो० जीड के अनुसार ” साख एक ऐसा विनिमय कार्य है, जो एक निश्चित अवधि के बाद भुगतान करने के बाद पूरा हो जाता है।

☞ प्रो० किनले ने कहा – “किसी व्यक्ति की वह ताकत, जिससे वह किसी और को आर्थिक वस्तुएँ देने के लिए राज़ी कर लेता है।”

साख की उत्पत्ति

☞ साख की उत्पत्ति वस्तु-विनिमय प्रणाली की समस्याओं से हुई। जब वस्तु-विनिमय में एक जैसी वस्तुओं का अभाव और लोगों की ज़रूरतें अलग-अलग थीं, तब लोगों ने एक-दूसरे पर भरोसा करना शुरू किया। वे बोले, “अभी चीजें दे दो, मैं बाद में चुका दूँगा।” इसी भरोसे से साख का जन्म हुआ। धीरे-धीरे इस भरोसे को लिखित रूप में साख पत्र (जैसे चेक, बैंक नोट) में बदल दिया गया। इस प्रकार, साख का विकास हुआ।

👉 साख में दो पक्ष होते हैं

(i) ऋणदाता पक्ष :- जो पैसा या वस्तु उधार देता है।
(ii) ऋणी पक्ष :- जो पैसा या वस्तु उधार लेता है।

साख का आधार

(i) विश्वास:- साख का मुख्य आधार विश्वास है। साख देने वाला (ऋणदाता) उधार देने को तभी तैयार होता है जब उसे विश्वास होता है कि ऋणी समय पर रुपया लौटा देगा।

(ii) चरित्र (Character):- ऋणी का चरित्र भी उसकी साख का आधार होता है। यदि ऋणी चरित्रवान तथा ईमानदार हैं तो उसे ऋण मिलने में दिक्कत नहीं होती है। लेकिन दूसरी ओर चरित्रहीन व्यक्तियों को कोई ऋण देने के लिए तैयार नहीं होता है।

(iii) चुकाने की क्षमता:- ऋणदाता (उधार देने वाला) तभी ऋण देता है जब उसे पूरा भरोसा होता है कि उधार लेने वाला उसे समय पर चुका पाएगा। इस तरह किसी व्यक्ति की साख उस व्यक्ति के भुगतान करने की क्षमता पर निर्भर करती है।

(iv) पूँजी एवं संपत्ति:- ऋणदाता उधार देने से पहले देखता है कि उस व्यक्ति के पास कितनी पूँजी और संपत्ति है। अगर किसी व्यक्ति के पास ज्यादा पूँजी या संपत्ति होती है, तो उसे ज्यादा आसानी से ऋण मिल जाता है।

(v) ऋण की अवधि:- ऋणदाता लंबी अवधि तक ऋण देने से डरते हैं क्योंकि भविष्य में ऋणी की हालत बदल सकती है। इसलिए, ऋणदाता छोटे समय के लिए ऋण देना ज्यादा सुरक्षित मानते हैं।

प्रश्न 4. साख पत्र किसे कहते है?
उत्तर – साख पत्र एक माध्यम है, जिसके द्वारा साख या ऋण का आदान प्रदान होता है।

मुद्रा और साख पत्र में अंतर

मुद्रा को कानूनी मान्यता प्राप्त होती है यानी हर कोई मुद्रा को स्वीकार करने के लिए मजबूर होता है। जबकि साख पत्रों को कोई कानूनी मान्यता नहीं होती है, इसलिए इन्हें हर कोई स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं होता है।

☞ साख पत्र कई प्रकार के होते है।

(i) चेक :- चेक एक प्रकार का लिखित आदेश होता है, जो बैंक में रुपया जमा करनेवाला अपने बैंक को देता है कि उसमें लिखित रकम उसमें लिखित व्यक्ति को दे दी जाए।

(ii) विनिमय बिल :- विनिमय बिल एक प्रकार का कागज पर लिखा वादा होता है, जिसमें तय तारीख को रकम चुकाने का वादा किया जाता है।

(iii) बैंक ड्राफ्ट :- बैंक ड्राफ्ट वह पत्र है, जो एक बैंक अपनी किसी शाखा या अन्य किसी बैंक को आदेश देता है कि उस पत्र में लिखी हुई रकम उसमें अंकित व्यक्ति को दे दी जाए।

(iv) हुण्डी :- हुण्डी, भारत में पुराने समय से प्रचलित उधारी का एक दस्तावेज है। जिसमें भुगतान का वादा या आदेश होता है।

(v) प्रतिज्ञा पत्र :- प्रतिज्ञा पत्र एक प्रकार का साख पत्र है, इस पत्र में ऋणी की माँग पर या एक निश्चित अवधि के बाद उसमें अंकित रकम ब्याज सहित देने का वादा किया जाता है।

(vi) यात्री चेक :- यात्रियों की सुविधा के लिए बैंक द्वारा एक प्रकार का चेक जारी किया जाता है, जिसे यात्री चेक कहते है। प्रत्येक यात्री चेक पर एक निश्चित रकम छपी रहती है।

(vii) पुस्तकीय साख :- खाता बही में दर्ज उधारी। जैसे आपने किसी दुकान से उधार लिया और दुकानवाले ने अपनी पुस्तक में लिख लिया।

(viii) साख प्रमाण पत्र :- बैंक या वित्तीय संस्था द्वारा जारी एक कागज है, जिसमें किसी व्यक्ति की साख (उधारी) लिखी होती है।

साख के गुण/लाभ

(i) व्यापार में सहूलियत :- साख मिलने से व्यापारी आसानी से ज़रूरत के समय वस्तुएँ या सेवाएँ प्राप्त कर सकते हैं।

(ii) उत्पादन में वृद्धि :- साख से नई मशीनें या कच्चा माल खरीद सकते हैं, जिससे उत्पादन बढ़ता है।

(iii) आपात स्थिति में मदद :- जब अचानक पैसों की ज़रूरत हो (जैसे बीमारी, शादी), साख से तुरंत मदद मिलती है।

(iv) आर्थिक विकास में योगदान :- साख का सही उपयोग अर्थव्यवस्था को गति देता है।

Ncert Topic

प्रश्न 1. आवश्यकताओं का दोहरा संयोग किसे कहते है?
उत्तर – जब एक व्यक्ति किसी चीज को बेचने की इच्छा रखता हो, वही वस्तु दुसरा व्यक्ति खरीदने की इच्छा रखता हो अर्थात् मुद्रा का उपयोग किये बिना लेन-देन हो है, तो उसे आवश्यकताओं का दोहरा सहयोग कहा जाता है।

☞ कागज के नोट, सिक्के, चेक, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, UPI, मोबाईल एवं नेट बैंकिंग आदि मुद्रा के आधुनिक रूप है।

⪼ करेंसी, धन के रूप में स्वीकार की जाती है, जिसमें सिक्के और कागज के नोट शामिल होते हैं। करेंसी नोट, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किया जाता है।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के प्रमुख काम

(i) मुद्रा जारी करना :- सरकार की तरफ से नोट और सिक्के छापने का काम RBI करता है।
(ii) बैंकों की निगरानी :- सभी बैंकों और समितियों पर नज़र रखता है कि वे सही तरीके से काम कर रहे हैं या नहीं।
(iii) ब्याज दरों पर नज़र :- कितना ब्याज लेना है और ऋण (लोन) की शर्तें क्या होंगी, इस पर निगरानी रखता है।
(iv) नकद शेष पर नज़र :- हर बैंक ने अपने पास कितना पैसा (कैश) रखा है, उसकी जानकारी RBI को रहती है।
(v) ऋण का सही वितरण देखता है :- किसको और कितना ऋण (लोन) देना है, इस पर भी RBI ध्यान देता है।

बैंकों में निक्षेप (रुपया जमा)

लोग अपने नाम से बैंक में खाता खुलवाकर अपना अतिरिक्त पैसा जमा करते हैं, इससे बैंक और जमाकर्ता दोनों को फायदा होता है। बैंक जमाकर्ता को 5% ब्याज के रूप में पैसा देती है। तथा बाकी पैसा को बैंक उधार (लोन) के रूप में लोगों को देते हैं।

☞ बैंक खातों में जमा धन को माँग के ज़रिए निकाला जा सकता है, इसलिए इस जमा को माँग जमा कहा जाता है।

बैंकों की ऋण संबंधी क्रियाएँ

(i) बैंक अधिक संख्या में लोगों की रुपया को जमा करता है।
(ii) बैंक जमा राशि का केवल 15% हिस्सा अपने पास नकद के रूप में रखता हैं। और बाकी पैसा उधार (लोन) के रूप में लोगों को देते हैं।

(iii) बैंक कर्जदारों से ज्यादा ब्याज लेते हैं जबकि जमाकर्ताओं को कम ब्याज देते हैं। जिससे बैंक को अधिक फायदा होता है।

⪼ ऋण की शर्तें विभिन्न व्यक्तियों या समूहों के लिए अलग अलग हो सकती हैं।

साख ऋणजाल के रूप में

किसान खेती के लिए साहूकार से उधार लेता है। लेकिन फसल कीड़े या दूसरी वजहों से नष्ट हो जाए तो किसान उधार नहीं चुका पाता है, और ऋण चुकाने में देरी होती है, जिससे कर्ज और बढ़ जाता है।

कर्ज-जाल बनने की परिस्थितियाँ

कर्जदार (किसान) पुराने कर्ज को नहीं चुका पाता है। और वह पुराने कर्ज को चुकाने के लिए और कर्ज ले लेता है। ऋण चुकाने के लिए अपनी ज़मीन या वस्तुएं बेच देता हैं। जिससे किसान की आर्थिक स्थिति और भी ख़राब हो जाती है।

प्रश्न 2. समर्थक ऋणाधार किसे कहते है?
उत्तर – जब कोई व्यक्ति या बैंक किसी को उधार (कर्ज) देता है, तो वह कर्ज के बदले कुछ चीज़ें गिरवी रखवाता है। कर्ज के बदले जो संपत्ति गिरवी रखी जाती है, उसे समर्थक ऋणाधार कहते हैं। जैसे– भूमि, जेवर (गहने), मकान

विविध प्रकार की साख व्यवस्था

(i) साहूकारों से ऋण :- छोटे किसान गाँव के साहूकार से पैसे उधार लेते हैं। और ब्याज बहुत ज़्यादा होता है।

(ii) व्यापारियों से ऋण :- किसान, कृषि व्यापारी से कम ब्याज पर उधार लेते हैं। व्यापारी शर्त रखते हैं कि फसल उन्हें ही बेचनी होगी। व्यापारी कम कीमत पर फसल खरीदकर ज़्यादा कीमत पर बेचता है।

(iii) बैंकों से ऋण :- मध्यम और बड़े किसान बैंक से सस्ते ब्याज पर ऋण लेते हैं। और बैंक से उन्हें अन्य सुविधाएँ भी मिलती हैं, जैसे बीमा या सलाह।

(iv) नियोक्ता से ऋण :- मजदूर अपने मालिक (जमींदार) से ऋण लेते हैं। और हर महीने 5% ब्याज लिया जाता है। मजदूर ऋण के बदले मालिक के लिए काम करते हैं।

(v) सहकारी समितियों से ऋण :- यह सबसे सस्ता और अच्छा विकल्प है। किसान, मछुआरे, और मजदूर इससे खेती, घर और व्यापार के लिए ऋण लेते हैं। यह ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत उपयोगी होता है।

कुछ व्यक्तियों या समूहों को बैंक से कर्ज न मिलने के कारण

(i) गाँवों में बैंक नहीं होते :- बहुत से ग्रामीण इलाकों में बैंक की बैंक ही नहीं होती, इसलिए लोग बैंक से कर्ज नहीं ले पाते।

(ii) समर्थक ऋणाधार (गिरवी) नहीं होना :- गरीब लोगों के पास ज़मीन-जायदाद नहीं होती, इसलिए बैंक कर्ज नहीं देते।

(iii) जरूरी कागज़ात नहीं होना :- कई बार लोगों के पास ज़रूरी दस्तावेज़ जैसे पहचान पत्र, ज़मीन के कागज़ आदि नहीं होते।

(iv) बैंक की शर्तें पूरी न कर पाना :- गरीब या अशिक्षित लोग बैंक की शर्तें पूरी नहीं कर पाते है।

☞ भारत में ऋण दो तरह के होते हैं

(i) औपचारिक ऋण :- औपचारिक ऋण में बैंक और सहकारी समितियाँ आती हैं। और यह सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त होता हैं। तथा सस्ती ब्याज दर पर ऋण मिलता है।

(ii) अनौपचारिक ऋण :- अनौपचारिक ऋण में मित्र, रिश्तेदार, साहूकार, व्यापारी, बड़े किसान आदि शामिल होते हैं। इसमें ब्याज दर ज़्यादा होती है और कर्ज के नियम तय नहीं होते है।

साख के स्रोत (वर्ष 2012 के अनुसार 1000 ग्रामीण परिवारों ने ऋण कहा से लिया)

(i) व्यावसायिक बैंक से 25% = हर 1000 में से 250 परिवारों ने बैंक से कर्ज लिया।
(ii) सहकारी समितियाँ / बैंक से 25% = 250 परिवारों ने सहकारी समितियों से कर्ज लिया।
(iii) अन्य औपचारिक स्रोत से 5% = 50 परिवारों ने अन्य सरकारी संस्थाओं से कर्ज लिया।
(iv) रिश्तेदार और मित्र से 8% = 80 परिवारों ने अपने जान-पहचान वालों से उधार लिया। इसमें ब्याज नहीं लगता या बहुत कम होता है।
(v) सरकारी से 1% = केवल 10 परिवारों को सीधे सरकार से कर्ज मिला।
(vi) जमींदार से 1% = 10 परिवारों ने ज़मींदार से कर्ज लिया।
(vii) साहूकार से 33% = 330 परिवारों ने साहूकार से उधार लिया। इसमें ब्याज बहुत अधिक होता है।
(viii) अन्य अनौपचारिक स्रोत से 2% = 20 परिवारों ने दुकानदार या अन्य निजी लोगों से कर्ज लिया।

प्रश्न 3. स्वयं सहायता समूह किसे कहते है?
उत्तर – स्वयं सहायता समूह 15 से 20 लोगों का एक समूह होता है, जो गरीब या साधारण परिवार से होते हैं और एक-दूसरे की मदद करने के लिए मिलकर काम करते हैं। यह लोग हर महीने थोड़ी-थोड़ी पैसे की बचत करते हैं और जरूरत पड़ने पर उसी पैसे से एक-दूसरे को कर्ज देते हैं।

स्वयं सहायता समूह बनाने का उद्देश्य (गरीबों के लिए)

(i) गरीबों को संगठित करना। ताकि वे एक साथ मिलकर आगे बढ़ सकें।
(ii) स्वरोज़गार के लिए प्रेरित करना
(iii) शोषण से बचाव
(iv) ऋण जाल से बचाना
(v) आत्मनिर्भरता और रोजगार = यह लोगों को आत्मनिर्भर बनाता है और रोजगार के अवसर देता है।

स्वयं सहायता समूह के कार्य

(i) बिना ज़मानत के कर्ज देना :- किसी भी संपत्ति को गिरवी रखे बिना ऋण दिया जाता है।
(ii) सदस्यों की बचत को इकट्ठा करना :- सभी की जमा राशि को एकत्र कर सुरक्षित रखा जाता है।
(iii) गाँव की महिलाओं को जोड़ना :- विशेष रूप से महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त किया जाता है।
(iv) कम ब्याज पर ऋण देना

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दोस्तों उम्मीद करता हूं कि ऊपर दिए गए कक्षा 10वीं के अर्थशास्त्र के पाठ 03 मुद्रा, बचत एवं साख (mudra bachat evam sakh) का नोट्स और उसका प्रश्न को पढ़कर आपको कैसा लगा, कॉमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद !

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