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Bihar Board Class 8th History Chapter 3 Solutions ग्रामीण जीवन और समाज

आज के इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 8वीं अतीत से वर्तमान का पाठ ‘ग्रामीण जीवन और समाज’ का वस्तुनिष्ठ प्रश्न को देखने वाले है। Bihar Board Class 8th

Bihar Board Class 8th History Chapter 3 Solutions ग्रामीण जीवन और समाज

ग्रामीण जीवन और समाज

अंग्रेजी शासन के पहले के गांव

भारत की अधिकांश आबादी गांव में रहती है। उस समय गांव के लोग अपने श्रम और मेहनत से बड़े बड़े राज्य का निर्माण करते थे। ज्यादातर गांव में सभी तरह के काम करने वाले लोग रहते थे, जो उन गांवों की जरूरतों को पूरा करते थे। गांव में जमींदार लोग भी रहते थे, और राजा द्वारा इन्हें काफी जमीन मिली हुई थी। और इनका काम लोगो से लगान वसूलना था। और गांव के लोगो का मुख्य काम कृषि था। खेती करने के लिए जमीन राजा द्वारा दिया जाता था, लेकिन इसके बदले में उन्हें लगान देना पड़ता था। जो व्यक्ति लगान नही देता था, उससे राजा तुरंत जमीन छीन लेता था।

अंग्रेजों को लगान वसूली का अधिकार मिला 

जब अंग्रेजों को लगान वसूलने का अधिकार मिल गया, तो वे अपने व्यापार के समान को खरीदने के लिए अपने देश से धन नहीं लाते थे। लेकिन फिर भी उनको और पैसे की जरूरत पड़ने लगी। जैसे – युद्ध लड़ने के लिए रुपए की जरूरत। इन सभी खर्चों को पूरा करने के लिए लोगो के लगान पर निर्भर रहने लगे। और लोगो से अधिक मात्रा में कर लेने लगे।

कंपनी दिवान के रूप में

17 अगस्त 1765 को मुग़ल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कंपनी को ‘दिवानी हक़’ (यानी राजस्व वसूली का अधिकार) बंगाल, बिहार और उड़ीसा का सौंप दिया।

नोट- 1770 में बंगाल में एक भीषण अकाल पड़ा।इसका मुख्य कारण कंपनी की अत्यधिक कर वसूली तथा फसलों की विफलता था। जिसके कारण एक तिहाई आबादी (करीब एक करोड़) भुखमरी और बीमारियों से मारे गए।

लगान व्यवस्था की शुरुआत

सन् 1789 ईस्वी में कंपनी ने जमींदारों के साथ एक समझौता किया, जिसके अनुसार 10 वर्षों के लिए लगान (भूमि कर) की एक निश्चित राशि तय की गई।

सन् 1793 ईस्वी में लॉर्ड कॉर्नवालिस के शासनकाल में कंपनी ने इस लगान को स्थायी रूप से निश्चित कर दिया, इसे ही स्थायी बंदोबस्त कहते है।

इस लगान को जमींदारों द्वारा शाम होने से पहले कंपनी के सरकार के पास पहुंचाना होता था, अगर कोई जमींदार समय पर लगान को नहीं पहुंचता था, उसे जमींदार के पद पर से हटा दिया जाता था ।

यह व्यवस्था बंगाल, बिहार और उड़ीसा में लागू हुआ। बाद में जमींदार अपने मन के अनुसार किसानों से लगान वसूलते थे । जिसके कारण किसानों पर अधिक कर का बोझ होने लगा । और इस व्यवस्था का लाभ जमींदारों को हो रहा था ।

रिकार्डो ने 1821 ईस्वी में प्रिंसिपल्स ऑफ पॉलिटिकल इकोनॉमी नामक पुस्तक लिखे । जिसमे किसानों का श्रम और जमींदारों के लाभ के बारे में बताया ।

रैयतवारी व्यवस्था

इस व्यवस्था के अनुसार अंग्रेजी कंपनी सीधा किसानों से कर लेती थी । और लगान उपज के आधार पर तय करती थी । इसमें किसानों की खेती पर होने वाले खर्च को काट कर जो बचता था, जिसमें से 50% लगान कंपनी लेती थी ।

महालवारी व्यवस्था 

जब अंग्रेज पंजाब, दिल्ली और उत्तरप्रदेश जैसे क्षेत्रों पर कब्जा किया, तो वहां उन्होंने सीधा किसान की जगह पर बड़े मालिको या परिवार जिन्हें महाल कहा जाता था । उनके साथ लगान वसूली करने का काम किया । और इस व्यवस्था को महालवारी व्यवस्था कहते है । इस व्यवस्था में बड़े परिवार वाले किसानों से लगान वसूल कर अंग्रेजो को देते थे । लगान लेने की प्रक्रिया रैयतवारी व्यवस्था ही था ।

प्रश्न 1. महाल किसे कहते है?
उत्तर– पंजाब, दिल्ली उत्तरप्रदेश के इलाकों में बड़े गांव के समूह को महाल कहा जाता था ।

नई लगान व्यवस्थाओं का ग्रामीण जीवन पर प्रभाव

स्थायी बंदोबस्त आने से जमींदारों की जमींदारी चली गई। और इस व्यवस्था के कारण लगान समय पर लेने के लिए किसानों को बेचने या बंधक बनाने का प्रचलन शुरू हो गया। और इसके बाद महाजन लोग आने लगे, जो किसानों को जमीन के बदले पैसा देता था।

1875 का दक्कन विद्रोह

महाराष्ट्र के पूना और अहमदनगर जिला में 1875 ईस्वी में किसानों ने रैयतवारी और महाजन के विरुद्ध आंदोलन किया। इस आंदोलन में किसान लगान की ऊंची दर के कारण परेशान थे। इस आंदोलन में किसानों ने महाजनों का बहिष्कार किया और उनके ब्याज की हिसाब किताब को जला दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि महाजन उन क्षेत्रों को छोड़कर भाग गए।

बाजार के लिए नई फसलों का उत्पादन 

नई व्यवस्था के साथ-साथ अंग्रेजो ने किसानों से मनपसंदीदा फसल का उत्पादन करने को कहा। इसमें बंगाल में पटसन (जूट), असम में चाय, तथा बिहार में नील, शोरा और अफीम जैसे फसलें थी। इन फसलों का किसान के लिए कोई उपयोग नहीं था, लेकिन विदेश में इसकी कीमत अधिक थी। और ऐसे फसलों को बेचकर अंग्रेज अधिक पैसा कमाते थे।

प्रश्न 2. नकदी फसल किसे कहते है?
उत्तर— वैसे फसल जिसे खेतों से सीधे व्यापारियों द्वारा खरीद लिया जाता है, उसे नकदी फसल कहते है। जैसे– गन्ना, नील, तंबाकू, अफीम

नील की खेती की समस्याएं 

अंग्रेजों द्वारा किसानों से जबरदस्ती नील की खेती कराई जाती थी। एक बार नील की खेती हो जाने के बाद उस खेत पर उस साल दुबारा कोई और फसल नहीं लगता है। जिसके कारण अब लोगों को आपातकाल में अनाज नहीं मिल पाता था। लेकिन पहले लोग अनाज को सुरक्षित रखते थे, आपातकाल से बचने के लिए।

नील दर्पण

👉नील दर्पण एक प्रसिद्ध बंगाली नाटक है, जिसके लेखक दीनबंधु मित्र है। 1860 ईस्वी में यह पुस्तक बिना किसी लेखक के नाम से छपी थी, ताकि अंग्रेज के गुस्से को उन्हें झेलना ना पड़े। इस किताब में नील की खेती करने वाले किसानों की स्थिति को बताया गया है।

नील किसानों का विद्रोह

यह विद्रोह बंगाल में नील की खेती करने वाले किसानों ने किया था, इस विद्रोह का मुख्य कारण नील की खेती की वजह से बार-बार पड़ने वाले अकाल व भुखमरी था। इस विद्रोह में किसानों ने बगान मालिको को लगान देना बंद कर दिया और महिलाओं तथा पुरुषों ने नील की फैक्ट्री पर हमला बोल दिया। और इसके बाद अखबार में किसान पर हुए अत्याचारों को लिखा गया।

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दोस्तों उम्मीद करता हूं कि ऊपर दिए गए कक्षा 8वीं के इतिहास के पाठ 03 ग्रामीण जीवन और समाज का नोट्स और उसका प्रश्न को पढ़कर आपको कैसा लगा, कॉमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद !

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