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Bihar Board Ncert Class 10th Social Science History Chapter 5 Notes arthvyavastha aur aajivika | अर्थव्यवस्था और आजीविका Objective Question

आज के इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 10वीं इतिहास का पाठ ‘अर्थव्यवस्था और आजीविका’ का नोट्स को देखने वाले है। arthvyavastha aur aajivika

Bihar Board Ncert Class 10th Social Science History Chapter 5 Notes arthvyavastha aur aajivika | अर्थव्यवस्था और आजीविका Objective Question

अर्थव्यवस्था और आजीविका

प्रश्न 1. औद्योगीकरण किसे कहते है?
उत्तर – औद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें वस्तुओं का उत्पादन मानव श्रम द्वारा न होकर मशीनों द्वारा कारखानों में किया जाता है। इसमें वस्तुओं का उत्पादन वृहद (बड़े) पैमाने पर होता है और उत्पादित वस्तुओं की खपत के लिए बड़े बाजार की आवश्यकता होती है।

☛ किसी भी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि और उद्योग होते हैं, जिन पर लोगों की आजीविका निर्भर रहती है।

☞ औद्योगिक क्रांति का अर्थ – ‘क्रांति’ शब्द का व्यवहार सामान्यतः विभिन्न देशों में हुए राजनीतिक परिवर्तनों के संदर्भ में किया जाता है, जैसे – इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति, फ्रांस की राज्यक्रांति, रूस की क्रांति इत्यादि।

⪼ अंग्रेज़ी शब्द Industrial Revolution (औद्योगिक क्रांति) का प्रयोग सबसे पहले प्रसिद्ध इतिहासकार ऑरनॉल्ड टॉयनबी ने किया। औद्योगिक क्रांति की एक विशेषता यह है कि यह वर्गविहीन क्रांति थी।

➣सर्वप्रथम अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ब्रिटेन विश्व का पहला देश बना, जहाँ कृषि एवं उद्योग क्षेत्र में मशीनीकरण प्रारंभ हुआ और औद्योगीकरण के एक नये युग का सूत्रपात (शुरुआत) हुआ। इसे औद्योगीकरण का नया युग कहा जाता है।
औद्योगीकरण की शुरूआत इंग्लैंड से हुई।

प्रश्न 2. आदि औद्योगीकरण (कुटीर उद्योग) किसे कहते है?
उत्तर – औद्योगीकरण के ठीक पहले के दौर (समय) को आदि औद्योगीकरण कहा जाता है। इसमें मानव श्रम से कुटीर उद्योग के द्वारा उत्पादन किया जाता था।

1750 तक ब्रिटेन की स्थिति (पूर्व-औद्योगीक हालात)

(i) सन् 1750 तक ब्रिटेन मुख्यतः कृषिप्रधान देश था।
(ii) देश की लगभग 80% जनसंख्या गाँवों में रहती थी और अपना भरण-पोषण कृषि से करती थी।
(iii) सूत, ऊन, काँच, लोहा, मिट्टी के बर्तन आदि के कुटीर-उद्योग थे।
(iv) इन उद्योगों में काम करने वाले कारीगर हाथ या हाथ-चालित यंत्रों से वस्तुएँ बनाते थे।

औद्योगीकरण के कारण

(i) नए-नए मशीनों का आविष्कार – मशीनों से काम जल्दी और अधिक होने लगा।
(ii) कोयले और लोहे की प्रचुरता – फैक्ट्रियाँ और मशीनें चलाने के लिए पर्याप्त कोयला व लोहा मिला।
(iii) फैक्ट्री प्रणाली की शुरुआत – लोग घर पर काम करने की बजाय फैक्ट्रियों में काम करने लगे।
(iv) सस्ते श्रम की उपलब्धता – मजदूर आसानी से और कम पैसे में मिल जाते थे।
(v) यातायात की सुविधा – रेल, सड़क और जहाज से माल का आना-जाना आसान हुआ।
(vi) विशाल औपनिवेशिक स्थिति – उपनिवेशों से सस्ता कच्चा माल मिला और तैयार माल बेचने के लिए बाजार भी मिल गया।

नये-नये मशीनों का आविष्कार

(i) टॉमस न्यूकॉम ने पहला वाष्प इंजन बनाया। लेकिन संशोधित कर 1769 ई० में जेम्स वाट ने वाष्प इंजन का आविष्कार किया।

(ii) 1769 ई० में वाल्टन निवासी रिचर्ड आर्कराइट ने सूत काटने की स्पिनिंग फ्रेम (वॉटर फ्रेम) नामक मशीन का निर्माण किया, जो जलशक्ति द्वारा चलने वाली थी।

(iii) 1770 ई० में स्टेडहील निवासी जेम्स हारग्रीब्ज ने सूत काटने की मशीन स्पिनिंग जेनी बनाई।

(iv) 1773 ई० में लंकाशायर के जॉन के ने फ्लाइंग शटल का आविष्कार किया। अब्राहम डर्बी ने लोहा गलाने की प्रक्रिया बताई।

(v) 1779 ई० में सैमुअल क्राम्पटन ने स्पिनिंग म्यूल बनाया जिससे बारीक सूत काटा जा सकता था।

(vi) 1785 ई० में एडमंड कार्टराइट ने वाष्प से चलने वाला पावर लूम नामक करघा तैयार किया। इसी समय बेन्नर नामक व्यक्ति ने कपड़ा छापने का यंत्र बनाया।

(vii) टॉमस बेल के बेलनाकार छपाई के आविष्कार ने रंगाई-छपाई में क्रान्ति लाई।

(viii) 1793 ई० में इली व्हिटनी ने कॉटन जिन (कपास ओटने की मशीन) बनाई, जो बीजों से सूती रुई अलग करने की मशीन थी।

(ix) 1815 ई० में हम्फी डेवी ने खानों में काम करने के लिए सेफ्टी लैम्प का आविष्कार किया।

(x) 1815 ई० में हेनरी बेसेमर ने शक्तिशाली भट्टी को विकसित किया और लोहा को कठोर बनाने का तरीका बताया।

(xi) जॉर्ज स्टीफेंशन ने वाष्प चालित रेल इंजन बनाया और रॉबर्ट फूल्टन ने वाष्प चालित पानी का जहाज बनाया।

प्रश्न 3. उपनिवेशवाद किसे कहते है?
उत्तर – किसी शक्तिशाली देश द्वारा अपने आर्थिक हितों की प्राप्ति के लिए किसी कमजोर देश पर राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आधिपत्य स्थापित करने की प्रक्रिया उपनिवेशवाद कहते है।

☞ अठारहवीं शताब्दी तक भारतीय उद्योग विश्व में बहुत विकसित थे — भारत को “दुनिया की सबसे बड़ी कार्यशाला” कहा जाता था। भारतीय हस्तशिल्प, शिल्प उद्योग और व्यापार बहुत सुंदर एवं उपयोगी वस्तुएँ उत्पादन करते थे।

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☛ अंग्रेज व्यापारी अपने एजेंटों (गुमाश्ता) की सहायता से यहाँ के कारीगरों को पेशगी रकम देकर उत्पादन करवाते थे; ये गुमाश्ता सामान मनमाने दाम पर खरीदते थे और उसका निर्यात इंग्लैंड कर देते थे।

प्रश्न 4. फैक्ट्री प्रणाली / कारखाना पद्धति किसे कहते है?
उत्तर – वृहद पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन मशीनों द्वारा कारखानों में करने की प्रणाली को फैक्ट्री प्रणाली कहते है।

➣ नये नये मशीनों का आविष्कार, पूँजी निवेश, सस्ते श्रम की उपलब्धता – फैक्ट्री प्रणाली के विकास का मुख्य कारण थे।

प्रश्न 5. निरूद्योगीकरण किसे कहते है?
उत्तर – औद्योगीकरण के कारण भारत में कुटीर उद्योग बंद होने के कगार पर पहुंच गया। इसे ही निरूद्योगिकरण कहा जाता है।

प्रश्न 6. गिल्ड प्रथा किसे कहते है?
उत्तर – गिल्ड प्रथा एक ऐसी व्यवस्था थी, जिसमें किसी एक ही धंधे या पेशे से जुड़े कारीगर और व्यापारी मिलकर एक संगठन (संघ) बनाते थे।
यह संगठन वस्तुओं की गुणवत्ता, कीमत, उत्पादन की मात्रा और नए कारीगरों को प्रशिक्षण देने का काम करता था तथा उस पेशे पर अपना एकाधिकार बनाए रखता था।

प्रश्न 7. बाड़ाबंदी प्रथा किसे कहते है?
उत्तर – अठारहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में बाड़ाबंदी प्रथा की शुरूआत हुई, जिसमें जमींदारों ने छोटे-छोटे खेतों को खरीद कर बड़े-बड़े कृषि फॉर्म में परिवर्तित किया एवं उसकी घेराबंदी की।

☞ ब्रिटेन में लिवरपुल, लंकाशायर एवं मैनचेस्टर सूती वस्त्र उद्योग का बड़ा केन्द्र था।
ब्रिटेन में सन् 1805 के बाद न्यू साउथ वेल्स ऊन उत्पादन का केंद्र बना।

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⪼ भारत का मैनचेस्टर अहमदाबाद को कहा जाता है, क्योंकि भारत यहाँ सूती वस्त्र का बड़ा उद्योग है।
उत्तर भारत का मैनचेस्टर कानपुर को कहा जाता है, और दक्षिण भारत का मैनचेस्टर कोयम्बटूर (तमिलनाडु) को कहा जाता है।

➣ 1813 में ब्रिटिश संसद ने चार्टर एक्ट पारित किया, जिसके तहत ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिया गया और स्वतंत्र व्यापार नीति का मार्ग प्रशस्त किया गया।

मुक्त व्यापार नीति का प्रभाव — मुक्त व्यापार की नीति के तहत ब्रिटेन में बिकने के लिए भारत में बने सामानों पर भारी कर / रोक लगा दिए गए, जिससे भारतीय निर्मित वस्तुएँ वहाँ बेचना कठिन हुआ।

भारत में फैक्ट्रियों की स्थापना

(i) 1830-40 के दशक में बंगाल में द्वारकानाथ टैगोर ने 6 संयुक्त उद्यम कंपनी लगाई।

(ii) भारत में सर्वप्रथम सूती कपड़े की मिल की नींव 1851 ई० में बम्बई में डाली गयी।

(iii) 1854 में कावस जी नाना जी दाभार ने पहला कारखाना निर्मित किया, इसे प्रथम आधुनिक कारखाना (पारसी उद्यमी) कहा जाता है।

(iv) सन् 1854 से 1880 तक 30 फैक्ट्रियाँ बनीं; इनमें से 13 पारसियों द्वारा स्थापित थीं।

(v) स्वेज नहर खुलने (1869) से बम्बई के बंदरगाह पर इंग्लैंड से आने वाले सूती कपड़ों का आयात बढ़ गया।

(vi) 1880-1895 के बीच सूती मिलों की संख्या 39 से अधिक हो गई और 1895 से 1914 के बीच सूती मिलों की संख्या 144 तक पहुँच गई।

(vii) 1917 ई० में कलकत्ता में देश की पहली जूट मिल हुकुम चंद (मारवाड़ी व्यवसायी) ने स्थापित किया।

(viii) 1918 में सबसे पहले लिमिटेड (प्राइवेट) कंपनी के रूप में बिरला ब्रदर्स की स्थापना हुई।

(ix) 1919 में बिरला जुट कंपनी और 1920 में ग्वालियर में जियाजी राव सूती कारखाना खुला।

(x) घनश्याम दास बिड़ला ने कई चालू कारखाने अंग्रेज़ों से खरीदकर अपना व्यापार बढ़ाया — उदाहरणतः एन्डविल से केशवराव कॉटन मिल और मार्टिन से चीनी के कारखाने खरीदा।

(xi) 1907 ई० में जमशेदजी टाटा ने झारखंड के साकची नामक स्थान पर टाटा आयरन एण्ड स्टील कंपनी (TISCO) स्थापना की।

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(xii) 1910 ई० में इन्होंने टाटा हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर स्टेशन की स्थापना की। जॉबर (Jobber) नामक व्यक्ति मजदूरों को काम दिलाता था और इसके बदले कमीशन लेता था।

(xiii) भारत में कोयला उद्योग का प्रारंभ 1814 ई० को हुआ। शुरुआत 1814 में रानीगंज (पश्चिम बंगाल) से हुई।

(xiv) 1868 में उत्पादन 5 लाख टन था; 1950 में यह बढ़कर 3.23 करोड़ टन हो गया। तत्कालीन बिहार कोयला उद्योग का मुख्य केन्द्र था।

(xv) औद्योगिक आयोग (1916) — 1916 में सरकार ने एक औद्योगिक आयोग नियुक्त किया ताकि भारतीय उद्योगों और व्यापार के लिए सहायता योग्य क्षेत्रों की पहचान की जा सके।

(xvi) राजस्व आयोग (1921) — 1921 में सरकार ने राजस्व आयोग बनाया; इसका प्रधान श्री इब्राहिम रहिमतुल्ला बनाए गए।

(xvii) राजस्व आयोग के तहत 1924 में टिन, कागज, केमिकल, चीनी उद्योग इत्यादि स्थापित होने लगे। 1930 में सीमेंट और शीशा (glass) उद्योग स्थापित हुए।

(xviii) 1955 में भिलाई, राउरकेला और दुर्गापुर में इस्पात कारखाना खोला गया। अभी भारत में 7 स्टील प्लांट हैं।

वर्तमान में 7 स्टील प्लांट

(i) इंडियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, हीरापुर (मध्य प्रदेश)

(ii) टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, जमशेदपुर

(iii) विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, भद्रावती (कर्नाटक)

(iv) राउरकेला स्टील प्लांट, राउरकेला (उड़ीसा) = जापान के सहयोग से स्थापना हुई।

(v) भिलाई स्टील प्लांट, भिलाई (छत्तीसगढ़) = रूस के सहयोग से स्थापना हुई।

(vi) दुर्गापुर स्टील प्लांट, दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) = ब्रिटेन के सहयोग से स्थापना हुई।

(vii) बोकारो स्टील प्लांट, बोकारो (झारखंड) = रूस के सहयोग से स्थापना हुई।

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☛ भारत में 1895 में पंजाब नेशनल बैंक, 1906 में बैंक ऑफ इंडिया, 1907 में इंडियन बैंक, 1911 में सेंट्रल बैंक, 1913 में द बैंक ऑफ मैसूर तथा ज्वाइंट स्टॉक बैंक की स्थापना हुई।

प्रथम विश्वयुद्ध से औद्योगीकरण में तेजी

(i) युद्ध के कारण इंग्लैंड में सैनिक सामान बनने लगे, मैनचेस्टर से वस्त्रों की आपूर्ति घटी — भारतीय वस्त्रों की माँग बढ़ी।

(ii) भारतीय कारखानों ने सैनिकों के लिए वर्दी, जूते, जूट की बोरियाँ, टेंट, जीन आदि बनाना शुरू किया।

(iii) उत्पादन बढ़ा, नए कारखाने खुले, मजदूरों की संख्या बढ़ी।

औद्योगीकरण के परिणाम

(i) नगरों का विकासफैक्ट्रियाँ बनने से लोग काम की तलाश में गाँवों से शहरों की ओर आए, जिससे नए-नए शहर बस गए।

(ii) कुटीर उद्योग का पतनमशीनों से बनी सस्ती चीज़ों के कारण हाथ से बनने वाले घरेलू उद्योग (कुटीर उद्योग) धीरे-धीरे खत्म होने लगे।

(iii) साम्राज्यवाद का विकासयूरोपीय देशों ने उद्योगों के लिए कच्चा माल और माल बेचने के लिए नए बाज़ार खोजे, जिससे उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद बढ़ा।

(iv) समाज में वर्ग विभाजन एवं बुर्जुआ वर्ग का उदय – समाज दो हिस्सों में बंट गया: एक तरफ पूँजीपति (बुर्जुआ वर्ग) जो कारखानों और मशीनों के मालिक बने। दूसरी तरफ मजदूर वर्ग जो काम करने वाला था।

(v) फैक्ट्री मजदूर वर्ग का जन्म – बड़े पैमाने पर लोग फैक्ट्रियों में मजदूरी करने लगे और एक नया वर्ग पैदा हुआ जिसे औद्योगिक मजदूर कहा गया।

(vi) स्लम पद्धति की शुरुआतशहरों में भीड़ बढ़ने से मजदूरों को छोटे-छोटे और गंदे घर में रहना पड़ा, जिन्हें स्लम कहा जाता है।

प्रश्न 8. साम्राज्यवाद किसे कहते हैं?
उत्तर– जब कोई देश अपनी ताकत (सैन्य, राजनीतिक या आर्थिक) के बल पर दूसरे देश या क्षेत्र पर कब्जा करके वहाँ शासन करता है, तो उसे साम्राज्यवाद कहते हैं।

प्रश्न 9. बुर्जुआ वर्ग (मध्यम वर्ग) किसे कहते हैं?
उत्तर– औद्योगीकरण के बाद एक नया वर्ग बना, जिसमें पढ़े-लिखे, व्यापारी और कारखानों के मालिक लोग शामिल थे, जिसे बुर्जुआ वर्ग कहते हैं। बाद में यही वर्ग राष्ट्रीय आंदोलन में भी आगे आया।

प्रश्न 10. स्लम पद्धति किसे कहते हैं?
उत्तर– जब फैक्ट्री मजदूरों को शहरों में बहुत छोटे, गंदे और बिना सुविधाओं वाले घर में रहना पड़ता है, तो उसे स्लम पद्धति कहते हैं।

मजदूरों की आजीविका

(i) फैक्ट्री मजदूरों का जीवन कठिन था — कम वेतन, लंबे घंटे (कई जगह 16–18 घंटे), और महिलाओं व बच्चों का शोषण आम था।

(ii) 1832 ई० में मजदूरों की स्थिति में सुधार के लिए सुधार अधिनियम पारित किया गया, लेकिन मजदूरों को कोई लाभ नहीं मिला, मतदान का अधिकार भी नहीं था।

(iii) 1838 ई० में लंदन श्रमिक संघ (London Working Men’s Association) के नेतृत्व में मजदूरों ने चार्टिस्ट आंदोलन का प्रारंभ किया। इस आंदोलन को मजदूरों का पहला संगठित आंदोलन माना जाता है।

(iv) भारत में 1850 के बाद का काल भारतीय श्रमिक वर्ग का आरम्भिक काल माना जाता है। 1882–1890 के बीच मद्रास और बंबई प्रेसिडेंसियों में मजदूरों ने 25 हड़तालें कीं।

(v) 1875 में आयोग नियुक्त किया गया, जिसके आधार पर भारत में 1881 ई० में पहला फैक्ट्री एक्ट पारित हुआ। इसके तहत 7 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों में काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया तथा 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों एवं महिलाओं के काम के घंटे और मजदूरी को निश्चित किया गया।

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(vi) 1918 ई० में इंग्लैंड के सभी व्यस्क स्त्री-पुरुषों को मताधिकार प्रदान किया गया।

(vii) 31 अक्टूबर 1920 ई० को अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की स्थापना की गई, जिसके प्रधान लाला लाजपत राय बनाए गए।

(viii) 1919 ई० में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की स्थापना की गई।

(ix) भारत में 1926 ई० में मजदूर संघ अधिनियम पारित हुआ, जिसके द्वारा पंजीकृत मजदूर संघों को मान्यता प्रदान की गई।

(x) मजदूर संगठन तीन भागों में बंट गए —
  • इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC)
  • हिन्द मजदूर संघ (HMS)
  • युनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (UTUC)

(xi) 1948 ई० में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम पारित किया गया, जिसके द्वारा उद्योगों के श्रमिकों की मजदूरी की दर को निश्चित किया गया।

(xii) स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 1962 ई० में केन्द्र सरकार ने मजदूरों की स्थिति में सुधार हेतु राष्ट्रीय श्रम आयोग का गठन किया, जिसके माध्यम से मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने एवं मजदूरी में सुधार का प्रयास किया गया।

कुटीर उद्योग का विशेषताएँ एवं उसकी उपयोगिता

(i) रोजगार के अवसरकुटीर उद्योग ग्रामीण और छोटे कस्बों में लोगों को काम देता है, जिससे बेरोजगारी कम होती है।

(ii) कौशल में वृद्धि – इससे लोगों को नया काम सीखने और अपने हुनर को निखारने का मौका मिलता है।

(iii) उद्यमिता में वृद्धिलोग छोटे-छोटे उद्योग शुरू करके आत्मनिर्भर बनते हैं।

(iv) कम पूँजी की आवश्यकता – इन उद्योगों को शुरू करने के लिए ज्यादा पैसे की जरूरत नहीं होती।

(v) शहरों की ओर पलायन रोकता है – जब गाँवों में ही रोजगार मिलता है तो लोग बड़े शहरों में काम की तलाश में नहीं जाते।

☞ भारतीय मलमल और छींट तथा सूती वस्त्रों की मांग पूरे विश्व में थी, खासकर ब्रिटेन में उच्च्च वर्ग के लोग हाथों से बनी हुई वस्तुओं को ज्यादा महत्व देते थे।

☛ भारत का कुटीर उद्योग न केवल स्थानीय आवश्यकता की पूर्ति के लिए उपलब्ध कराते थे, बल्कि वे निर्मित वस्तुओं का निर्यात भी करते थे।

➣ औद्योगीकरण के फलस्वरूप जहाँ वस्तुओं का उत्पादन कम समय में बड़े पैमाने पर होने लगा, वहीं भारत में कुटीर उद्योग बंद होने के कगार पर पहुँच गए। क्योंकि मशीनों से निर्मित वस्तुओं की तुलना में कुटीर उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं के मूल्य अधिक थे। इस अवस्था को निरूद्योगीकरण कहते हैं।

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☛ स्वतंत्रता के पश्चात भारत सरकार ने कुटीर उद्योग की उपयोगिता एवं उसके लिए नए नीतियों का निर्माण किया।

(i) 6 अप्रैल 1948 की औद्योगिक नीति के द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योग का प्रोत्साहन किया गया।

(ii) 1952-53 में सरकार ने पाँच बोर्ड बनाए जो अलग-अलग कुटीर उद्योगों के लिए थे — हथकरघा, रेशम, खादी, नारियल जटा, ग्रामीण उद्योग। इनका उद्देश्य इन उद्योगों को सहायता और प्रशिक्षण देना था।

(iii) 1956 एवं 1977 की औद्योगिक नीति में कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन की बात कही गई।

(iv) 23 जुलाई 1980 को औद्योगिक नीति घोषणा पत्र जारी किया गया जिसमें कृषि आधारित उद्योग की बात कही गई।

Bharati Bhawan

☞ कपड़े तैयार करने के चरण

इंग्लैंड में कपड़ा उत्पादन की पूरी प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती थी। सबसे पहले स्टेप्लर्स (रेशों के छाँटने वाले) ऊन या रेशों को छाँटते थे। इसके बाद सूत कातनेवाले (spinners) उस छाँटे हुए ऊन या रेशे से धागा तैयार करते थे। फिर बुननेवाले (weavers) इन धागों से कपड़ा बुनते थे। तैयार कपड़े को फुलर्ज (fullers) के पास भेजा जाता था, जो कपड़े की सफाई और गाढ़ाई (cloth-fulling) का कार्य करते थे। इसके पश्चात रंगसाज़ (dyers) कपड़े को विभिन्न रंगों में रंगते थे।

बाड़ाबंदी आंदोलन

☛ बाड़ाबंदी आंदोलन के बाद इंग्लैंड में खुले खेत, जिन्हें कॉमन्स कहा जाता था, अब बड़े किसानों की निजी संपत्ति बन गए। पहले इन खेतों का उपयोग गाँव के छोटे और गरीब किसान (कॉटेजरर्स) जलावन की लकड़ियाँ इकट्ठा करने, पशुओं के लिए चारा लाने और थोड़ी बहुत खेती करने के लिए करते थे। लेकिन बाड़ाबंदी के कारण इन खेतों में अब उनका प्रवेश बंद हो गया।

इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के कारण

(i) कोयला और लोहा की अधिकता।
(ii) कृषि क्रांति से उत्पादन और जनसंख्या में वृद्धि।
(iii) पूंजी की उपलब्धताव्यापार और उपनिवेशों से धन।
(iv) उपनिवेश साम्राज्य से कच्चा माल और बाजार
(v) नई खोजें और मशीनेंवाष्प इंजन, स्पिनिंग जेनी, पावरलूम आदि।
(vi) राजनीतिक स्थिरता और संपत्ति की सुरक्षा
(vii) परिवहन और व्यापार का विकास।
(viii) मजदूर वर्ग की उपलब्धता — बाड़ाबंदी से ग्रामीण मजदूर शहरों में आए।

इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के परिणाम

(i) उद्योगों का विकास: हाथ से काम करने की जगह मशीनों ने ले ली, बड़े-बड़े कारखाने स्थापित हुए।
(ii) उत्पादन में वृद्धि: वस्तुओं का उत्पादन बहुत अधिक मात्रा में और कम लागत पर होने लगा।
(iii) शहरों का विकास: लोग गाँवों से शहरों की ओर काम की तलाश में आने लगे, नए औद्योगिक नगर बने।

(iv) मजदूर वर्ग का निर्माण: मजदूरों की एक नई सामाजिक श्रेणी बनी, जो कारखानों में काम करने लगी।

(v) व्यापार और परिवहन का विस्तार: रेल, सड़क और जहाज परिवहन के साधन विकसित हुए, व्यापार बढ़ा।

(vi) सामाजिक परिवर्तन: जीवनशैली बदली; एक नया पूंजीपति और मजदूर वर्ग उभरा।

(vii) आर्थिक असमानता: अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ी, मजदूरों की स्थिति कठिन रही।

(viii) वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति: नई-नई मशीनें, आविष्कार और तकनीक विकसित हुईं।

(ix) विश्व स्तर पर प्रभाव: इंग्लैंड विश्व का “कारखाना घर” (Workshop of the World) बन गया और अन्य देशों में भी औद्योगिक क्रांति फैल गई।

इंगलैंड में श्रमिकों की आजीविका एवं उनका जीवन

⪼ गाँवों से लोग काम की तलाश में शहरों आए, परंतु रहने और रोजगार की दिक्कतें रहीं। मजदूरों को कम वेतन मिलता था और कई बार छंटनी का सामना करना पड़ता था। फिर भी, हाथ से काम करनेवाले कुशल कारीगरों की मांग बनी रही क्योंकि वे सुंदर और विशेष डिज़ाइन के सामान बनाते थे।

छंटनी = जब काम कम पड़ जाता है और मजदूरों को “काम से निकाल दिया जाता है”, तो उसे छंटनी कहा जाता है।

➣ मशीनों से रोजगार छिनने के डर से मजदूरों ने मशीनों और कारखानों का विरोध किया। 1830–1848 के बीच कई श्रमिक आंदोलन हुए। 1832 में सुधार अधिनियम आया, लेकिन मजदूरों को कोई लाभ दे पाया। इसके बाद लंदन श्रमिक संघ और 1838 का चार्टिस्ट आंदोलन शुरू हुआ।

भारत का वस्त्र उद्योग और यूरोपीय कंपनियाँ

☞ भारत का सूती और रेशमी वस्त्र उद्योग बहुत प्रसिद्ध था।सूरत, मछलीपट्टनम और हुगली जैसे बंदरगाहों से अंतरराष्ट्रीय व्यापार होता था। व्यापारी बुनकरों को पेशगी धन (दटनी) देकर कपड़ा बनवाते और निर्यात करते थे।

⪼ प्लासी (1757) और बक्सर (1764) की लड़ाइयों के बाद कंपनी ने बंगाल में शासन स्थापित किया। इलाहाबाद की संधि (1765) से उसे बंगाल, बिहार, उड़ीसा की दीवानी मिल गई। इससे कंपनी को राजस्व और व्यापार दोनों पर नियंत्रण मिल गया।

☛ यूरोपीय कंपनियों की प्रतिद्वंद्विता – शुरू में यूरोपीय व्यापारिक कंपनियाँ (पुर्तगाली, डच, अंग्रेज, फ्रांसीसी) के बीच भारत में व्यापार को लेकर प्रतिस्पर्धा थी। स्थानीय व्यापारी और बुनकर इसका फायदा उठाते थे, क्योंकि वे ऊँची कीमत देने वाली कंपनी को कपड़ा बेचते थे।

☞ गुमाश्तों की नियुक्ति = कंपनी ने गुमाश्ता नाम के कर्मचारियों को नियुक्त किया। उनका काम था — बुनकरों को पेशगी (ददनी) देना, उनसे कपड़ा बनवाना, और उसकी गुणवत्ता की जाँच करना। अब बुनकर सीधे कंपनी के अधीन हो गए और उन्हें दूसरों को कपड़ा बेचने की अनुमति नहीं रही।

⪼ गुमाश्तों और बुनकरों में टकराव = धीरे-धीरे गुमाश्ते अत्याचारी बन गए। वे बाहरी लोग थे और गाँवों में जाकर धौंस जमाते, समय पर कपड़ा न देने पर सजा और मारपीट करते थे। बुनकर अब कंपनी और गुमाश्तों के गुलाम जैसे हो गए। उन्हें तय दाम पर ही कपड़ा देना पड़ता था।

➣ बुनकरों का पलायन और विद्रोह = अत्याचारों से परेशान होकर कई बुनकरों ने कपड़ा बुनना छोड़ दिया, गाँव छोड़कर दूसरे इलाकों में चले गए, कुछ ने विद्रोह भी किया और कंपनी का कर्ज लौटाने से मना कर दिया। कहा जाता है, कुछ बुनकरों ने अपने अँगूठे तक काट लिए ताकि उन्हें जबरन काम न करवाया जाए।

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दोस्तों उम्मीद करता हूं कि ऊपर दिए गए कक्षा 10वीं के इतिहास के पाठ 05 अर्थव्यवस्था और आजीविका (arthvyavastha aur aajivika) का नोट्स और उसका प्रश्न को पढ़कर आपको कैसा लगा, कॉमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद !

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